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________________ चौवीसवाँ शतक : उद्देशक - १२] [ २०१ ३९. ते णं भंते ! जीवा० ? एवं जहेव रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स तहेव तिसु वि गमएसु लद्धी । नवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पंच धणुसताई; ठिती जहन्त्रेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । एवं अणुबंधो। संवेहो नवसु गमएसु जहेव सन्निपंचेंदियस्स । मज्झिल्लएसु तिसु गमएसु लद्धी – जहेव सन्निपंचेंदियस्स मज्झिल्लएसु तिसु । सेसं तं चेव निरवसेसं । पच्छिल्ला तिन्नि गमगा जहा एयस्स चेव ओहिया गमगा, नवरं ओगाहणा जहन्नेणं पंच धणुसयाई, उक्कोसेण वि पंच धणुसयाई; ठिती अणुबंधो जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी । सेसं तहेव, नवरं पच्छिल्लएसु गम सु संखेज्जा उववज्जंति, नो असंखेज्जा उवव० । [ १ - ९ गमगा ] [३९ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न । [३९ उ.] गौतम ! रत्नप्रभा में उत्पन्न होने योग्य मनुष्य की जो वक्तव्यता पहले कही है, वही यहाँ, तीनों गमकों में कहनी चाहिए । विशेष यह है कि उसके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की होती है; स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की होती है । अनुबन्ध भी इसी प्रकार जानना चाहिए। संवेध — जैसे संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च का कहा है, वैसे ही यहाँ न ही गमकों में कहना चाहिए। बीच के तीन गमकों (४-५-६ ) में संज्ञी पंचेन्द्रिय के मध्यम तीन गमकों की वक्तव्यता के समान कहना चाहिए। शेष सब पूर्वोक्त प्रकार से जानना। पिछले तीन गमकों (७-८-९) का कथन इसी के प्रथम तीन औघिक गमकों के समान कहना चाहिए। विशेष यह है कि शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की है; स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि के होते हैं। शेष सब पूर्ववत् । विशेषता यह है कि पिछले तीन गमकों (७-८-९) में संख्यात ही उत्पन्न होते हैं, असंख्यात नहीं । [ गमक १ से ९ तक ] विवेचन - मनुष्यों की पृथ्वीकायिकादि में उत्पत्ति आदि से सम्बद्ध गमकों में विशेषता(१) निष्कर्ष — पृथ्वीकायिक जीव संज्ञी और असंज्ञी, संख्यात वर्ष की आयु वाले, पर्याप्तक और अपर्याप्तक मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं । (२) कितने काल की स्थिति सम्बन्धी प्रश्न का समाधान यह है कि जिस प्रकार जघन्य काल की स्थिति वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च के विषय में तीन गमक कहे गए हैं, उसी प्रकार यहाँ असंज्ञी मनुष्यों के भी आदि के औघिक तीनों समग्र गमक समझने चाहिए। शेष छह गमक सम्मूच्छिम (असंज्ञी) मनुष्यों में सम्भव नहीं हैं, इसलिए यहाँ शेष छह गमकों का निषेध किया गया है । ( ३ ) संज्ञी मनुष्यों के नौ गमकों में विशेष ज्ञातव्य जिस प्रकार रत्नप्रभा में उत्पन्न होने योग्य संज्ञी मनुष्य के गमक कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने योग्य संज्ञी मनुष्य के छह गमकों (प्रथम, द्वितीय, तृतीय और सप्तम, अष्टम और नवम गमक) का कथन करना चाहिए । विशेषता यह है कि रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले मनुष्य की अवगाहना जघन्य अंगुल - पृथक्त्व की और स्थिति जघन्य मास - पृथक्त्व कही थी, किन्तु यहाँ अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। संवेध —— नौ गमकों में पृथ्वीकायिकों में आकर उत्पन्न होने वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च के समान है, क्योंकि पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले संज्ञी मनुष्य और तिर्यञ्च की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की होती
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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