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________________ १९६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छम्मासा। एवं अणुबंधो वि। चत्तारि इंदिया। सेसं तहेव जाव नवमगमए कालाएसेणं जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साई छहिं मासेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साई चउवीसाए मासेहिं अब्भहियाई, एवतियं०।[१-९ गमगा] [२६ प्र.] (भगवन् ! ) यदि वे पृथ्वीकायिक जीव चतुरिन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों, तो? इत्यादि प्रश्न। __[२६ उ.] चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी इसी प्रकार (पूर्वोक्त त्रीन्द्रिय के समान) नौ गमक कहने चाहिए। विशेष यह है कि इन (कुछ) स्थानों में नानात्व कहना चाहिए—इनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चार गाऊ की होती है। इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट छह माह की होती है। अनुबन्ध भी स्थिति के अनुसार होता है। इनक चार इन्द्रियाँ होती हैं। शेष सब पूर्ववत् जानना, यावत् नौवें गमक में कालादेश से जघन्य छह मास अधिक २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट चौवीस मास अधिक ८८,००० वर्ष; इतने काल तक गमनागमन करता है। [गमक १ से ९ तक] विवेचन–चतुरिन्द्रिय-उत्पत्तिविषयक विशेषता-चतुरिन्द्रिय के नौ ही गमकों का कथन त्रीन्द्रिय के समान है; किन्तु संवेध में कुछ विशेषता है, वह मूल पाठ में स्पष्ट कर दी गई है। जिसका स्पष्टीकरण नहीं किया गया है, उसे स्वयं उपयोग लगाकर यथायोग्य जान लेनी चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक की अपेक्षा पृथ्वीकायिक-उत्पत्ति निरूपण २७. जइ पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं सन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति असन्निपंचेंदियतिरिक्खजो० ? | गोयमा ! सन्निपंचेंदिय०, असन्निपंचेंदिय०। [२७ प्र.] ( भगवन् ! ) यदि वे (पृथ्वीकायिक) पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [२७ उ.] गौतम ! वे संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं और असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं। २८. जइ असण्णिपंचिंदिय० किं जलचरेहिंतो उवव० जाव किं पजत्तएहितो उववजंति अपज्जत्तएहिंतो उवव०? गोयमा ! पज्जत्तएहितो वि उवव०, अपजत्तएहितो वि उववजंति। [२८ प्र.] भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक) असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे जलचरों से उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् क्या पर्याप्तकों से या अपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं ? [२८ उ.] गौतम ! वे यावत् सभी के पर्याप्तकों से भी और अपर्याप्तकों से भी आते हैं। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८२९
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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