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भी मानना है कि भारत में जब लेखनकला का विकास नहीं हुआ था तब फिनिशिया में शिक्षा और लेखन का विकास हो चुका था। भारत के व्यापारी जब व्यापार हेतु फिनिशिया जाते थे तब व्यापार की सुविधा हेतु उन्होंने फिनिशियन लिपि का अध्ययन किया और उन व्यापारियों के साथ ही फिनिशियन लिपि भारत में आई। उस लिपि 7 का संशोधन और परिष्कार कर ब्राह्मणों ने एक लिपि का निर्माण किया। ब्राह्मणों के द्वारा निर्मित होने के कारण उस लिपि का नाम ब्राह्मी हुआ।
डॉ. राजबली पाण्डेय ने एक अभिनव कल्पना की है। उनका अभिमत है कि भारत से कुछ व्यक्ति फिनिशिया गये। वे ब्राह्मीलिपि के जानकार थे। वे वहीं पर बस गए। वहाँ पर बसने के कारण ब्राह्मीलिपि वहाँ के वातावरण से प्रभावित हुई। यही कारण है कि फिनिशियन और ब्राह्मी दोनों ही लिपियों में डॉ. पाण्डेय ने अपने मत को प्रमाणित करने के लिए ऋग्वेद की ६-५१, १४;६१,१ ऋचाएँ प्रस्तुत की है। ब्राह्मीलिपि का ही विकास फिनिशियन लिपि है।
टेलर, सेथ आदि विज्ञों का अभिमत है कि ब्राह्मी का विकास दक्षिणी सेमेटिक लिपि से हुआ है। तो कितने ही विद्वान् दक्षिणी सेमेटिक शाखा अरबी लिपि से ब्राह्मीलिपि का उद्भव मानते हैं । पर गहराई से चिन्तन करने पर दक्षिणी सेमेटिक लिपि या उसकी शाखालिपियों से ब्राह्मी का मेल नहीं बैठता है। यदि यह कहा जाय कि अरबवासियों के साथ भारतवर्ष का सम्पर्क अतीत काल से था, इस कारण अरबी से ब्राह्मी की उत्पत्ति हुई, इस कथन में और तर्क में वजन नहीं है।
डॉ. राइस डेविड्स का अभिमत है कि एक ऐसी लिपि पहले प्रचलित थी जो सेमेटिक अक्षरों के उद्भव के पूर्व ही यूफ्रेटिस नदी की घाटी में विकसित सभ्यता में प्रचलित थी। उस पुरानी लिपि से ब्राह्मीलिपि का सीधा सम्बन्ध है । वह लिपि सेमेटिक लिपि को भी जन्म देने वाली है। विद्वानों का ऐसा मन्तव्य है कि इस सम्बन्ध में गहराई से चिन्तन की आवश्यकता है।
एडवर्ड थामस, गोल्ड स्टूकर, राजेन्द्रलाल मित्र, लास्सेन, डासन, कनिंघम आदि विज्ञों का मानना है कि ब्राह्मीलिपि का उद्भवस्थल भारत ही है। पर इनका यह मानना है कि अतीत काल में आर्यभाषी जनता द्वारा किसी चित्रलिपि का प्रयोग किया जाता होगा। सम्भव है उसी से ब्राह्मीलिपि का जन्म हुआ है। बूलर ने इस मन्तव्य का विरोध करते हुए कहा—भारत में चित्रलिपि नहीं थी फिर उससे ब्राह्मी का प्रादुर्भाव कैसे हुआ?
डॉ. सुनीति चटर्जी का मन्तव्य है कि भारत की जो लिपियाँ अभी तक पढ़ी जा सकी हैं, उनमें ब्राह्मीलिपि सबसे प्राचीन है। यही भारतीय आर्यभाषाओं से सम्बन्धित प्राचीनतम लिपि है। अधुनातन अन्वेषणा से यह निा प्रकट हा चुका है कि ब्राह्मी भारत की लिपि है। लिपिविद्याविशारद डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा के
ब्दों में ब्राह्मीलिपि अपनी प्रौढ़ अवस्था में और पूर्ण व्यवहार में आती हुई मिलती है और उसका किसी बाहरी स्रोत और प्रभाव से निकलना सिद्ध नहीं होता। इस लिपि के आद्य निर्माता ऋषभदेव रहे हैं। इस कारण भगवती में ब्राह्मीलिपि को नमस्कार कर भगवान् ऋषभदेव को और अक्षरश्रुत को नमस्कार किया गया है। अक्षरश्रुत के रूप में ज्ञान को नमस्कार किया गया है। पञ्च ज्ञानों में श्रुत ज्ञान ही सबसे अधिक व्यवहार योग्य एवं उपकारक १. प्राचीन काल में एशिया के उत्तर-पश्चिम में स्थित भू-भाग (सीरिया) फिनिशिया कहा जाता था। २. (क) भारत की भाषाएँ और भाषा सम्बन्धी समस्याएँ, पृ.१७०-१७१ (ख) विशेष जिज्ञासु, 'आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन' भाग २ देखें।
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