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________________ [१७५ तइओ नागकुमारुद्देसओ तृतीय उद्देशक : नागकुमार-( उत्पादादि-प्ररूपणा) गति की अपेक्षा से नागकुमार की उत्पत्ति का निरूपण १. रायगिहे जाव एवं वयासि[१] राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा २. नागकुमारा णं भंते ! कओहिंतो उववजति ? किं नेरइएहिंतो उववजंति, तिरि-मणुदेवेहिंतो उववजति ? गोयमा ! णो णेरइएहितो उववजंति, तिरिक्खजोणिय-मणुस्सेहिंतो उववजंति, नो देवेहितो उववजति। [२ प्र.] भगवन् ! नागकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा तिर्यञ्चयोनिकों से, मनुष्यों से या देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? [२ उ.] गौतम ! वे न तो नैरयिकों से और न देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, वे तिर्यञ्चयोनिकों से या मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। ____ विवेचन—निष्कर्ष-नागकुमार न तो नैरयिकों से आकर उपन्न होते हैं और न ही देवों से; वे तिर्यञ्चों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। नागकुमारों में उत्पन्न होनेवाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उपपात-परिमाणादि. वीस द्वारों की प्ररूपणा ३. जदि तिरिक्ख०? एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया (उ० २ सु० ३) तहा एतेसिं पि जाव असण्णि त्ति। [३ प्र.] (भगवन् ! ) यदि वे (नागकुमार) तिर्यञ्चों से आते हैं,तो....... इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । [३ उ.] (गौतम ! ) जिस प्रकार (उ. २ सू. ३ में) असुरकुमारों की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार इनकी भी वक्तव्यता, यावत् असंज्ञी-पर्यन्त कहनी चाहिए। संख्येय वर्षायुष्क-असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों की नागकुमारों में उत्पत्ति की प्ररूपणा ४. जदि सन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो० किं संखेजवासाउय०, असंखेजवासाउय० ? गोयमा ! संखेजवासाउय०, असंखेजवासाउय० जाव उववज्जति।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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