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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २०. जदि सन्निमणुस्सेहिंतो उववजंति किं संखेजवासाउयसन्निमणुस्सेहिंतो उववजंति, असंखेजवासाउयसन्निमणुस्सेहिंतो उववजंति ?
गोयमा ! संखेजवासाउय० जाव उववजंति, असंखेजवासाउय० जाव उववजंति।
[२० प्र.] भगवन् ! यदि वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[२० उ.] गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले (संज्ञी मनुष्यों से आकर) भी उत्पन्न होते हैं और असंख्यात वर्ष की आयु वाले (संज्ञी मनुष्यों) से (आकर) भी।
विवेचन—निष्कर्ष-असुरकुमार संख्यात वर्ष की और असंख्यातवर्ष की आयु वाले भी संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्य में उपपात-परिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा
___२१. असंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उवजित्तए से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववजेजा ?
गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं तिपलिओवमट्टितीएसु उववजेजा। .
[२१ प्र.] भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य, जो असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ?
[२१ उ.] गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले (असुरकुमारों) में उत्पन्न होता है।
२२. एवं असंखेजवासाउयतिरिक्खजोणियसरिसा आदिल्ला तिन्नि गमगा नेयव्वा, नवरं सरीरोगाहणा पढम-बितिएसु गमएसु जहन्नेणं सारिरेगाइं पंच धणुसयाई, उक्कोसेणं तिनि गाउयाई। सेसं तं चेव। ततियगमे ओगाहणा जहन्नेणं तिन्नि गाउयाई, उक्कोसेण वि तिण्णि गाउयाई। सेसं जहेव तिरिक्खजोणियाणं। [१-३ गमगा]।
[२२] इस प्रकार पूर्वोक्त असुरकुमारों की उत्पत्ति के प्रथम के तीनों गमक (१-२-३) असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्चयोनिक जीवों के गमक के समान जानने चाहिए। विशेषता यह है कि प्रथम और द्वितीय गमक में शरीरावगाहना जघन्य सातिरेक पांच सौ धनुष की और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है। शेष सब कथन पूर्ववत् । तृतीय गमक में शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ की समझनी चाहिए। शेष सब कथन तिर्यञ्चयोनिकों के समान है। [सू. २१-२२ गमक १-२-३]
२३. सो चेव अप्पणा जहन्नकालद्वितीओ जाओ, तस्स वि जहन्नकालद्वितीयतिरिक्खजोणिय