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________________ चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-२] [१६९ में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में भी पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेष यह है कि असुरकुमारों की स्थिति और संवेध का कथन यहाँ विचारपूर्वक जान लेना चाहिए। [सू. १५ अष्टम गमक] १६. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं तिपलिओवमं, उक्कोसेण वि तिपलिओवमं। एसा चेव वत्तव्वया, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं छप्पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि छप्पलिओवमाइं, एवतियं०। [नवमो गमओ]। [१६] यदि वह (उत्कृष्ट स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो वह जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है; इत्यादि वही पूर्वोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से-जघन्य और उत्कृष्ट छह पल्योपम; इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। [सू. १६ नौवाँ गमक] विवेचन–असुरकुमारों में संज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय की उत्पत्ति आदि से सम्बन्धित कुछ स्पष्टीकरण (१)—असंख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च की जो उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की बतलाई गई है, वह देवकुरु आदि के युगलिक तिर्यञ्चों की अपेक्षा से समझनी चाहिए; क्योंकि उनकी तीन पल्योपमरूप असंख्यात वर्ष की आयु होती है और वे उत्कृष्ट अपनी आयु के तुल्य ही देवायु का बन्ध करते हैं। वे उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं, क्योंकि असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्च, मनुष्यक्षेत्रवर्ती ही होने से सदा संख्यात ही होते हैं, असंख्यात कदापि नहीं होते। उनके संहनन आदि-उनमें एकमात्र वज्रऋषभनाराच संहनन ही पाया जाता है; क्योंकि असंख्यात वर्षायुष्कों में यही संहनन होता है। उनकी अवगाहना जो धनुषपृथक्त्व कही गई है, वह पक्षियों की अपेक्षा समझनी चाहिए। उनकी आयु पल्योपम के असंख्यातवें भाग परिमाण होने से वे असंख्यात वर्ष की आयु वाले होते हैं। उत्कृष्ट अवगाहना, जो छह गाऊ की बताई गई है, वह देवकुरु आदि में उत्पन्न हाथी आदि की अपेक्षा से समझनी चाहिए। असंख्यातवर्ष की आयु वाले नपुंसकवेदी नहीं होते, वे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी ही होते हैं। उत्कृष्ट छह पल्योपम की स्थिति बतलाई गई है, वह तीन पल्योपम तो तिर्यञ्च-भव-सम्बन्धी और तीन पल्योपम असुरकुमार-भव-सम्बन्धी समझनी चाहिए। जीव, देवभव से निकल कर फिर असंख्यातवर्ष की आयुष्य वाले जीवों में उत्पन्न नहीं होते। जघन्य काल की स्थिति रूप चतुर्थ गमक के विषय में कुछ स्पष्टीकरण-जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्च की स्थिति सातिरेक पूर्वकोटि की कही है, वह पक्षी आदि के लिए समझनी चाहिए। उत्कृष्ट स्थिति सातिरेक पूर्वकोटि की बतलाई गई है, उसका आशय यह है कि असंख्यातवर्ष की आयु वाले पक्षी आदि की स्थिति सातिरेक पूर्वकोटि की होती है और वह अपनी उत्कृष्ट आयु के बराबर ही देवायु का बन्ध करता है । उत्कृष्ट अवगाहना सातिरेक एक हजार धनुष की बतलाई गई है, वह सातवें कुलकर से पहले होने वाली हस्ति आदि की अपेक्षा से समझनी चाहिए; क्योंकि यहाँ जघन्य स्थिति वाले असंख्यात १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८२० २. वही, पत्र ८२०
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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