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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ७३. ते णं भंते ! जीवा०?
सो चेव सत्तमो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो जाव भवादेसो त्ति।कालादेसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहिआओ; एवतियं जाव करेजा। [सु० ७२-७३ अट्ठमो गमओ]।
[७३ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[७३ उ.] गौतम ! (परिमाण से लेकर भवादेशपर्यन्त) सम्पूर्ण सप्तम गमक कहना चाहिए। काल की अपेक्षा से, जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष यावत् गमनागमन करता है। [सू.७२-७३ अष्टम गमक]
७४. उक्कोसकालट्ठितीयपज्जत्ता जाव तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोसकालद्वितीए जाव उववजित्तए से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववजेजा?
गोयमा ! जहन्नेणं सागरोवमट्टितीएसु, उक्कोसेण वि सागरोवमट्टितीएसु उववज्जेज्जा।
[७४ प्र.] भगवन् ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्त यावत्......... तिर्यञ्चयोनिक, जो उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ?
[७४ उ.] गौतम ! वह जघन्य और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। ७५. ते णं भंते ! जीवा०?
सो चेव सत्तमगमओ निरवसेसो भाणियव्वो जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं पुव्वकोडीए अब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं; एवइयं जाव करेजा। [सु०७४-७५ नवमो गमओ] ।
[७५ प्र.] भगवन् ! वे जीव (एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?) इत्यादि प्रश्न ।
[७५ उ.] गौतम ! परिमाण से लेकर भवादेश तक के लिए वही पूर्वोक्त सप्तम गमक सम्पूर्ण कहना चाहिए। काल की अपेक्षा से जघन्य पूर्वकोटि अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल यावत् गमनागमन करता है। [सू० ७४-७५ नौवाँ गमक]
७६. एवं एते नव गमगा उक्खेवनिक्खेवओ नवसु वि जहेव असन्नीणं।
[७६] इसी प्रकार ये नौ गमक होते हैं; और इन नौ ही गमकों का प्रारम्भ और उपसंहार (उत्क्षेप और निक्षेप) असंज्ञी जीवों के समान (कहना चाहिए।)
विवेचन–नौ गमक—यहाँ पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक की अपेक्षा से रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की उत्पत्ति-सम्बन्धी नौ गमक कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं—(१) औधिक (सामान्य) संज्ञी-तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय का, औधिक नैरयिकों में उत्पन्न होने रूप प्रथम गमक है। (२) जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने रूप दूसरा गमक है। (३) उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने रूप तीसरा