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________________ १३०] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा! नो इत्थवेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा । [२० प्र.] भगवन्! वे जीव स्त्रीवेदक हैं, पुरुषवेदक हैं या नपुंसकवेदक हैं? [ २० उ.] गौतम! वे न तो स्त्रीवेदक होते हैं और न ही पुरुषवेदक होते हैं, किन्तु नपुंसकवेदक हैं । २१. तेसि णं भंते! जीवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोड़ी। [२१ प्र.] भगवन् ! उन जीवों के कितने काल की स्थिति कही है? [२१ उ.] गौतम! उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है। २२. तेसि णं भंते! जीवाणं केवतिया अज्झवसाणा पन्नत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा अज्झवसाणा पन्नत्ता । [२२ प्र.] भगवन् ! उन जीवों के कितने अध्यवसाय - स्थान कहे हैं? [ २२ उ.] गौतम! उनके अध्यवसाय-स्थान असंख्यात हैं । २३. ते णं भंते! किं पसत्था, अप्पसत्था ? गोयमा ! पसत्था वि, अप्पसत्था वि । [ २३ प्र.] भगवन्! उनके वे अध्यवसाय स्थान प्रशस्त होते हैं या अप्रशस्त होते हैं [ २३ उ.] गौतम! वे प्रशस्त भी होते हैं और अप्रशस्त भी होते हैं । २४. से णं भंते! ‘पज्जत्ताअसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिये' इति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । [ २४ प्र.] भगवन् ! वे जीव पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकरूप में कितने काल तक रहते हैं? [ २४ उ.] गौतम! वे जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट पूर्वकोटि तक (उस अवस्था में ) रहते हैं। २५. से णं भंते! ‘पज्जत्ताअसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए रयणप्पभापुढविनेरइए पुरवि पज्जत्ताअसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए' त्ति केवतियं कालं सेवेज्जा ?, केवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा ? गोमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाइं, कालाएसेणं जहन्त्रेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागं पुव्वकोडिअब्भहियं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा । [ सु०५-२५ पढमो गमओ ] [२५ प्र.] भगवन्! वे जीव पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव हों, फिर रत्नप्रभापृथ्वी में नैरयिकरूप से उत्पन्न हों और पुन: (उसी) पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय - तिर्यञ्चयोनिक हों, यों कितना काल सेवन (व्यतीत करते हैं और कितने काल तक गति-आगति ( गमनागमन) करते हैं?
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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