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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
गोयमा! नो इत्थवेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा ।
[२० प्र.] भगवन्! वे जीव स्त्रीवेदक हैं, पुरुषवेदक हैं या नपुंसकवेदक हैं?
[ २० उ.] गौतम! वे न तो स्त्रीवेदक होते हैं और न ही पुरुषवेदक होते हैं, किन्तु नपुंसकवेदक हैं ।
२१. तेसि णं भंते! जीवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोड़ी।
[२१ प्र.] भगवन् ! उन जीवों के कितने काल की स्थिति कही है?
[२१ उ.] गौतम! उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है।
२२. तेसि णं भंते! जीवाणं केवतिया अज्झवसाणा पन्नत्ता ?
गोयमा ! असंखेज्जा अज्झवसाणा पन्नत्ता ।
[२२ प्र.] भगवन् ! उन जीवों के कितने अध्यवसाय - स्थान कहे हैं?
[ २२ उ.] गौतम! उनके अध्यवसाय-स्थान असंख्यात हैं ।
२३. ते णं भंते! किं पसत्था, अप्पसत्था ?
गोयमा ! पसत्था वि, अप्पसत्था वि ।
[ २३ प्र.] भगवन्! उनके वे अध्यवसाय स्थान प्रशस्त होते हैं या अप्रशस्त होते हैं
[ २३ उ.] गौतम! वे प्रशस्त भी होते हैं और अप्रशस्त भी होते हैं ।
२४. से णं भंते! ‘पज्जत्ताअसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिये' इति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी ।
[ २४ प्र.] भगवन् ! वे जीव पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकरूप में कितने काल तक रहते हैं? [ २४ उ.] गौतम! वे जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट पूर्वकोटि तक (उस अवस्था में ) रहते हैं। २५. से णं भंते! ‘पज्जत्ताअसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए रयणप्पभापुढविनेरइए पुरवि पज्जत्ताअसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए' त्ति केवतियं कालं सेवेज्जा ?, केवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा ?
गोमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाइं, कालाएसेणं जहन्त्रेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागं पुव्वकोडिअब्भहियं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा । [ सु०५-२५ पढमो गमओ ]
[२५ प्र.] भगवन्! वे जीव पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव हों, फिर रत्नप्रभापृथ्वी में नैरयिकरूप से उत्पन्न हों और पुन: (उसी) पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय - तिर्यञ्चयोनिक हों, यों कितना काल सेवन (व्यतीत करते हैं और कितने काल तक गति-आगति ( गमनागमन) करते हैं?