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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[८ उ.] गौतम! (उनके शरीर की अवगाहना) जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट एक हजार योजन की होती हैं।
९. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा किंसठिया पन्नत्ता ?
गोयमा ! हुंडसंठाणसंठिया पन्नत्ता ।
[९ प्र.] भगवन् ! उनके शरीर का संस्थान कौन-सा कहा गया है?
[९ उ.] गौतम! उनके हुण्डकसंस्थान होता है।
१०. तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ?
गोयमा ! तिन्नि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा— कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा।
[१० प्र.] भगवन्! उन जीवों के कितनी लेश्याएँ कही गई हैं?
[१० उ. ] गौतम! उनके (आदि की) तीन लेश्याएँ कही गई हैं— कृष्ण, नील, कापोत ।
११. ते णं भंते! जीवा किं सम्मद्दिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी ?
गोयमा ! नो सम्मद्दिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छद्दिट्ठी ।
[११ प्र.] भगवन्! वे जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं, मिथ्यादृष्टि होते हैं अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टि होते हैं? [११ उ.] गौतम! वे सम्यग्दृष्टि नहीं होते, मिथ्यादृष्टि होते हैं, सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते हैं ।
१२. ते ण भंते जीवा किं नाणी, अन्नाणी?
गोयमा! नो नाणी, अन्नाणी, नियमं दुअन्नाणी, तं जहा - मतिअन्नाणी य सुयअन्नाणी य ।
[१२ प्र.] भगवन् ! वे जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं?
[१२ उ.] गौतम! वे ज्ञानी नहीं होते, अज्ञानी होते हैं, उनके अवश्य दो अज्ञान होते हैं, यथामतिअज्ञान और श्रुत- अज्ञान ।
१३. ते णं भंते! जीवा किं मणजोगी, वड्जोगी, कायजोगी?
गोयमा ! नो मणजोगी, वइजोगी वि, कायजोगी वि।
[१३ प्र.] भगवन् ! वे जीव मनोयोगी होते हैं, या वचनयोगी अथवा काययोगी होते हैं?
[१३ उ.] गौतम! वे मनोयोगी नहीं, (किन्तु) वचनयोगी और काययोगी होते हैं।
१४. ते णं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता ?
गोयमा! सागारोवउत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि ।