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________________ १२८] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [८ उ.] गौतम! (उनके शरीर की अवगाहना) जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट एक हजार योजन की होती हैं। ९. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा किंसठिया पन्नत्ता ? गोयमा ! हुंडसंठाणसंठिया पन्नत्ता । [९ प्र.] भगवन् ! उनके शरीर का संस्थान कौन-सा कहा गया है? [९ उ.] गौतम! उनके हुण्डकसंस्थान होता है। १०. तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा ! तिन्नि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा— कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा। [१० प्र.] भगवन्! उन जीवों के कितनी लेश्याएँ कही गई हैं? [१० उ. ] गौतम! उनके (आदि की) तीन लेश्याएँ कही गई हैं— कृष्ण, नील, कापोत । ११. ते णं भंते! जीवा किं सम्मद्दिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी ? गोयमा ! नो सम्मद्दिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छद्दिट्ठी । [११ प्र.] भगवन्! वे जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं, मिथ्यादृष्टि होते हैं अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टि होते हैं? [११ उ.] गौतम! वे सम्यग्दृष्टि नहीं होते, मिथ्यादृष्टि होते हैं, सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते हैं । १२. ते ण भंते जीवा किं नाणी, अन्नाणी? गोयमा! नो नाणी, अन्नाणी, नियमं दुअन्नाणी, तं जहा - मतिअन्नाणी य सुयअन्नाणी य । [१२ प्र.] भगवन् ! वे जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं? [१२ उ.] गौतम! वे ज्ञानी नहीं होते, अज्ञानी होते हैं, उनके अवश्य दो अज्ञान होते हैं, यथामतिअज्ञान और श्रुत- अज्ञान । १३. ते णं भंते! जीवा किं मणजोगी, वड्जोगी, कायजोगी? गोयमा ! नो मणजोगी, वइजोगी वि, कायजोगी वि। [१३ प्र.] भगवन् ! वे जीव मनोयोगी होते हैं, या वचनयोगी अथवा काययोगी होते हैं? [१३ उ.] गौतम! वे मनोयोगी नहीं, (किन्तु) वचनयोगी और काययोगी होते हैं। १४. ते णं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता ? गोयमा! सागारोवउत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि ।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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