SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८] तइए अवय' वग्गे : दस उद्देसगा ____ तृतीय अवकवर्ग : दश उद्देशक प्रथम वर्गानुसार तृतीय अवकवर्ग का निरूपण ३१. अह भंते ! आय-काय-कुहुण'-कुंदुक्क'-उव्वेहलिय-सफा-सज्झा-छत्ता-वंसाणियकुराणं', एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए०? एवं एत्थ वि मूलाईया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा आलुवग्गे। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। ॥ ततिओ वग्गो समत्तो॥२३-३॥ [१ प्र.] भगवन् ! आय, काय, कुहणा, कुन्दुक्क, उव्वेहलिय, सफा, सज्झा, छत्ता, वंशानिका और कुरा (अथवा कुमारी), इन वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? [१ उ.] गौतम! यहाँ भी आलूवर्ग के मूलादि समग्र दस उद्देशक कहने चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि। ॥ तेईसवाँ शतक : तृतीय वर्ग समाप्त॥ *** पाठान्तर–१. अवय कवय। २. 'कुहणा अणेगविहा प.तं.–आए काए कुहणे कुणक्के दव्वहलिया, सफाए सज्झाए छत्तोए वंसीण हिताकुरए।' -प्रज्ञापना, प.१, पत्र ३३-२ ३. कुंदुरुक्क तथा कुहुक्क ४. सज्जा ५.कुमाराणं ६. अधिकपाठ-नवरं ओगाहणा तालवग्गसरिसा। सेसं तं चेव।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy