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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सागरोपम वर्ष का होता है। अरहंतों द्वारा महाविदेह और भरत-ऐरवतक्षेत्र में कौन-कौन से धर्म का निरूपण?
६. एएसु णं भंते ! पंचसु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो पंचमहव्वतियं सपडिक्कमणं धम्म पण्णवयंति?
णो तिणठे समठे। एएसु णं पंचसु भरहेसु, पंचसु एरवएसु पुरिम-पच्छिमगा दुवे अरहंता भगवंतो पंचमहव्वतियं (पंचाणुव्वइयं) सपडिक्कमणं धम्मं पण्णवयंति, अवसेसा णं अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पण्णवयंति।एएसुणं पंचसु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पण्णवयंति।
[६ प्र.] भगवन् ! इन (उपर्युक्त) पांच महाविहेद क्षेत्रों में अरहन्त भगवन्त क्या सप्रतिक्रमण पंचमहाव्रत वाले धर्म का उपदेश करते हैं ?
[६ उ.] (गौतम ! ) यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है।
इन (उपर्युक्त) पांच भरत क्षेत्रों में तथा पांच ऐरवत क्षेत्रों में प्रथम और अन्तिम ये दो अरहन्त भगवन्त सप्रतिक्रमण पांच महाव्रतों वाले धर्म का उपदेश करते हैं। शेष (बाईस) अरिहन्त भगवन्त चातुर्याम (चार यामरूप) धर्म का उपदेश करते हैं और पांच महाविदेह क्षेत्रों में भी अरिहन्त भगवन्त चातुर्याम-धर्म का उपदेश करते हैं ।
विवेचन-फलितार्थ-पांच भरत और ऐरवत क्षेत्रों में प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर भगवान् प्रतिक्रमण-' सहित पंचमहाव्रतरूप धर्म की प्ररूपणा करते हैं, शेष बाईस तीर्थंकर भगवान् तथा पांच महाविदेह क्षेत्र में होने वाले तीर्थंकर भगवान् चातुर्याम-धर्म की प्ररूपणा करते हैं। भरतक्षेत्र में वर्तमान अवसर्पिणीकाल में चौवीस तीर्थंकरों के नाम
७. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए कति तित्थयरा पन्नत्ता?
गोयमा ! चउवीसं तित्थयरा पन्नत्ता, तं जहा—उसभ-अजिय-संभव-अभिनंदण-सुमतिसुप्पभ-सुपास-ससि-पुप्फदंत-सीयल-सेजंस-वासुपुज्ज-विमल-अणंतइ-धम्म-संति-कुंथु-अरमल्लि-मुणिसुव्वय-नमि-नेमि-पास-वद्धमाणा।
[७ प्र.] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र (भारतवर्ष) में असवर्पिणी काल में कितने तीर्थंकर
हुए हैं ?
[७ उ.] गौतम ! चौवीस तीर्थंकर हुए हैं। यथा—१. ऋषभ, २. अजित, ३. सम्भव, ४. अभिनन्दन, ५ सुमति, ६. सुप्रभ (पद्मप्रभ), ७. सुपार्श्व, ८. शशि (चन्द्रप्रभ), ९. पुष्पदन्त (सुविधि), १०. शीतल,
१. भगवती. विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा.६, पृ. २९०२