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________________ ५८] अट्ठमो उद्देसओ : 'भूमी' आठवाँ उद्देशक : (कर्म-अकर्म ) भूमि (आदि सम्बन्धी) कर्मभूमियों और अकर्मभूमियों की संख्या का निरूपण १. कति णं भंते ! कम्मभूमिओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! पन्नरस कम्मभूमीओ पनत्ताओ, तं जहा-पंच भरहाई, पंच एरवताई, पंच महाविदेहाई। [१ प्र.] भगवन् ! कर्मभूमियां कितनी कही गई हैं ? [१ उ.] गौतम ! कर्मभूमियां पन्द्रह कही गई हैं । यथा—पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह। २. कति णं भंते ! अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ? . गोयमा ! तीसं अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा—पंच हेमवयाई, पंच हेरण्णवयाई, पंच हरिवासाई, पंच रम्मगवासाइं, पंच देवकुरूओ, पंच उत्तरकुरूओ। [२ प्र.] भगवन् ! अकर्मभूमियां कितनी कही गई हैं ? [२ उ.] गौतम ! अकर्मभूमियां तीस कही गई हैं । यथा—पांच हैमवत, पांच हैरण्यवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु। विवेचन कर्मभूमि और अकर्मभूमि—जिन क्षेत्रों में असि (शस्त्रास्त्र और युद्धविद्या), मसि (लेखन और अध्ययन-अध्यापनादि) तथा कृषि (खेतीबाड़ी तथा आजीविका के अन्य उपाय) रूप कर्म (व्यवसाय) हों, उन्हें, 'कर्मभूमि' कहते हैं । जहाँ असि, मसि, कृषि आदि न हों, किन्तु कल्पवृक्षों से निर्वाह होता हो, उन्हें अकर्मभूमि' कहते हैं। कर्मभूमियां कहाँ-कहाँ ? -जम्बूद्वीप में एक भरत, एक ऐरवत और एक महाविदेह है। धातकीखण्डद्वीप में दो भरत, दो ऐरवत और दो महाविदेह हैं । अर्धपुष्करद्वीप में दो भरत, दो ऐरवत और दो महाविदेह हैं। इस प्रकार कुल १५ कर्मभूमियां हैं। तीस अकर्मभूमियां कहाँ-कहाँ ? —तीस अकर्मभूमियों में से एक हैमवत, एक हैरण्यवत, एक हरिवर्ष, एक रम्यकवर्ष, एक देवकुरु और एक उत्तरकुरु, ये छह क्षेत्र जम्बूद्वीप में हैं और इनसे दुगुने—बारह क्षेत्र धातकीखण्डद्वीप में और बारह क्षेत्र अर्धपुष्करद्वीप में हैं। १. भगवती. विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा.६, पृ. २९०१
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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