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________________ ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक पृथ्वीकायिकरूप में उत्पन्न होने योग्य पृथ्वीकायिक द्वारा पूर्व-पश्चात् आहार- उत्पाद निरूपण ४६, सौधर्मादिकल्प से ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक के बीच में मरणसमुद्घात करके रत्नप्रभा से अधः सप्तम पृथ्वी तक पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य पृथ्वीकायिक की पूर्व-पश्चात् आहार-उत्पाद - प्ररूपणा ४७, पृथ्वीकायिक विषयक सूत्रों के अतिदेशपूर्वक अप्कायिक विषयक पूर्व-पश्चात् आहार-उत्पाद निरूपण ४९ पृथ्वीकायिक- विषयक सूत्रों के अतिदेशपूर्वक अप्कायिक जीवविषयक (विशिष्ट परिस्थिति में ) पूर्व-पश्चात् आहार-उत्पाद प्ररूपणा ५०, सत्तरहवें शतक के दसवें उद्देशक के अनुसार वायुकायिक जीवों के विषय में पूर्वपश्चात् आहार- उत्पाद विषयक प्ररूपणा ५१ । सप्तम उद्देश बंध के तीन भेद और चौवीस दण्डकों में उनकी प्ररूपणा ५२, अष्टविध कर्मों में त्रिविध बन्ध एवं उनकी चौवीस दण्डकों में प्ररूपणा ५३, आठों कर्मों के उदयकाल में प्राप्त होने वाले बंधत्रय का चौवीस दण्डकों में निरूपण ५३, वेदत्रय तथा दर्शनमोहनीय चारित्रमोहनीय में त्रिविध बन्ध प्ररूपणा ५४, शरीर, संज्ञा, लेश्या दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान एवं ज्ञानाज्ञान विषयों में त्रिविधबंध प्ररूपणा ५५ । आठवाँ उद्देश कर्मभूमियों और अकर्मभूमियों की संख्या का निरूपण ५८, अकर्मभूमि और कर्मभूमि के विविध क्षेत्रों में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के सद्भाव - अभाव का निरूपण ५९, अरहंतों द्वारा महाविदेह और भरतऐरवत क्षेत्र में कौन-कौन से धर्म का निरूपण ? ६०, भरतक्षेत्र में वर्तमान अवसर्पिणी काल में चौवीस तीर्थंकरों के नाम ६०, चौवीस तीर्थंकरों के अन्तर तथा तेईस जिनान्तरों में कालिकश्रुत के व्यवच्छेद- अव्यवच्छेद का निरूपण ६१, भ. महावीर और शेष तीर्थंकरों के समय में पूर्वश्रुत की अविच्छिन्नता की कालावधि ६२, भगवान् महावीर और भावी तीर्थंकरों में अन्तिम तीर्थंकर के तीर्थ के अविच्छिन्नता की कालावधि ६३, तीर्थ और प्रवचन क्या और कौन ? ६४, निर्ग्रन्थ-धर्म में प्रविष्ट उग्रादि क्षत्रियों द्वारा रत्नत्रयसाधना से सिद्धगति या देवगति में गमन तथा चतुर्विध देवलोक-निरूपण ६५ । नौवाँ उद्देशक चारणमुनि के दो प्रकार : विद्याचारण और जंघाचारण ६६, विद्याचारणलब्धि समुत्पन्न होने से विद्याचारण कहलाता है ६६, विद्याचारण की शीघ्र, तिर्यग् एवं ऊर्ध्वगति-सामर्थ्य तथा विषय ६७, जंघाचारण का स्वरूप जंघाचारण की शीघ्र, तिर्यक् और ऊर्ध्वगति का सामर्थ्य और विषय ७० । दसवाँ उद्देशक ७०, चौवीस दण्डकों से सोपक्रम एवं निरूपक्रम आयुष्य की प्ररूपणा ७२, चौवीस दण्डकों में उत्पत्ति और उद्वर्त्तना की आत्मोपक्रम-परोपक्रम आदि विभिन्न पहलुओं से प्ररूपणा ७३, चौवीस दण्डकों और सिद्धों में कति-अकति-अवक्तव्य-संचित पदों का यथायोग्य निरूपण ७५, कति - अकति- अवक्तव्य-संचित यथायोग्य चौवीस दण्डकों और सिद्धों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा ७८, चौवीस दण्डकों और सिद्धों में षट्क समर्जित आदि [ ११२]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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