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________________ ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-१० सम्बद्धता या अवयवछेदन के अभाव का निरूपण किया गया है। कठिन शब्दों का अर्थ 'आबाहं—अबाधा-थोड़ी पीड़ा। वाबाहं—व्याबाधा विशेष पीड़ा। छविच्छेदं-अवयवों का छेदन। अन्नमन्नबद्धा-परस्पर बद्ध। अण्णमण्णपुट्ठा-परस्पर स्पृष्ट । अन्नमनघडत्ताए—परस्पर सम्बद्ध। नट्टिया-नर्तकी। सिंगारागारचारुवेसा-शृंगार का. घर और सुन्दर वेष वाली। जणसयाउलंसि जणसयसहस्साउलंसि—सैकड़ों मनुष्यों से आकुल (व्याप्त) तथा. लाखों मनुष्यों से व्याप्त। सन्निवडियाओ—पड़ती हैं। पेच्छगा—प्रेक्षकदर्शक। उप्पाएंति:-उत्पन्न करती हैं। बत्तीसतिविधस्स नदृस्स : व्याख्या-बत्तीस प्रकार के नाट्यों में से। इन बत्तीस प्रकार के नाट्यों में से ईहामृग, ऋषभ, तुरग, नर, मकर, विहग, व्याल, किन्नर आदि के भक्तिचित्र नाम का एक नाट्य है। इसी प्रकार के अन्य इकतीस प्रकार के नाट्य राजप्रश्नीयसूत्र में किये हुए वर्णन के अनुसार जान लेने चाहिए।' एक आकाशप्रदेश में जघन्य-उत्कृष्ट जीवप्रदेशों एवं सर्व जीवों का अल्पबहुत्व २९. लोगस्स णं भंते ! एगम्मि आगासपएसे जहन्नपदे जीवपदेसाणं, उक्कोसपदे जीवपदेसाणं सव्वजीवाण य कतरे कतरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा? . . गोयमा ! सव्वत्थोवा लोगस्स एगम्मि आगासपदेसे जहन्नपदे जीवपदेसा, सव्वजीवा असंखेज्जगुणा, उक्कोसपदे जीवपदेसा विसेसाहिया। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। ॥एक्कारसमे सए दसमो उद्देसओ समत्तो ॥११.१०॥ [२९ प्र.] भगवन् ! लोक के एक आकाशप्रदेश पर जघन्यपद में रहे हुए जीवप्रदेशों, उत्कृष्ट पद में रहे हए जीवप्रदेशों और समस्त जीवों में से कौन किससे अल्प. बहत. तल्य या विशेषाधिक है? [२९] गौतम ! लोक के एक आकाशप्रदेश पर जघन्यपद में रहे हुए जीवप्रदेश सबसे थोड़े हैं, उनसे सर्वजीव असंख्यातगुणे हैं, उनसे (एक आकाशप्रदेश पर )उत्कृष्ट पद में रहे हुए जीवप्रदेश विशेषाधिक हैं। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-जीवप्रदेशों और सर्वजीवों का अल्पबहुत्व—प्रस्तुत २९वें सूत्र में भगवान् ने लोक के एक आकाशप्रदेश पर जघन्य एवं उत्कृष्ट पद में रहे हुए जीवप्रदेशों तथा सर्वजीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया है। ॥ ग्यारहवां शतक : दसवाँ उद्देशक समाप्त॥ ००० १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. २, पृ. ५३१-५३२ २. भगवती. विवेचन, भा. ४ (पं. घेवरचन्दजी), पृ. १९१२ - ३. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५२७
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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