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________________ ७७८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जघन्य, अपर्याप्त बादर अग्निकायिक की उत्कृष्ट एवं पर्याप्त बादर अग्निकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यगुणी एवं विशेषाधिक है। ३३-३४-३५. इसी प्रकार उससे पर्याप्त बादर अप्कायिक की जघन्य, अपर्याप्त बादर अप्कायिक की उत्कृष्ट एवं पर्याप्त बादर अप्कायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी एवं विशेषाधिक है। ३६-३७-३८. उससे पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक की जघन्य, अपर्याप्त बादरपृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट तथा पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी तथा विशेषाधिक है । ३९. उससे पर्याप्त बादर निगोद की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है। ४०. अपर्याप्त बादर निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है, और ४१. पर्याप्त बादर निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है। ४२. उससे पर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है। ४३. उससे अपर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है और ४४. उससे पर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है। विवेचन—फलितार्थ—पृथ्वीकायिक, अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय और निगोद वनस्पतिकाय, इन पांचों के सूक्ष्म और बादर दो-दो भेद होते हैं। इनमें प्रत्येकशरीरी वनस्पति को मिलाने से ग्यारह भेद होते हैं। इनके प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्त भेद से २२ भेद हो जाते हैं। इनकी जघन्य अवगाहना और उत्कृष्ट अवगाहना के भेद से ४४ भेद होते हैं। इन्हीं ४४ स्थावर जीवभेदों की अवगाहना का अल्पबहुत्व यहाँ (प्रस्तुत सूत्र २२ में) बताया गया है। पृथ्वी आदि की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र होने पर भी उसके असंख्येय भेद होते हैं। इसलिए अंगुल के असंख्यातवें भाग की परस्परापेक्षा से असंख्येयगुणत्व में कोई विरोध नहीं आता। प्रत्येकशरीर वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट अवगाहना सहस्र योजन से कुछ अधिक की समझनी चाहिए। एकेन्द्रिय जीवों में सूक्ष्म-सूक्ष्मतरनिरूपण २३. एयस्स णं भंते ! पुढविकाइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स वणस्सइकाइयस्स य कयरे काये सव्वसुहुमे ?, कयरे काये सव्वसुहुमतराए ? गोयमा ! वणस्सतिकाए सव्वसुहुमे, वणस्सतिकाए सत्वसुहुमतराए। [२३ प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक, इन पाँचों में कौन-सी काय सब से सूक्ष्म है और कौन-सी सूक्ष्मतर है। [२३ उ.] गौतम! (इन पांचों कायों में से) वनस्पतिकाय सबसे सूक्ष्म है, सबसे सूक्ष्मतर है। २४. एयस्स णं भंते ! पुढविकाइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स य कयरे काये सव्वसुहमे ?, कयरे काये सव्वसुहुमतराए ? गोयमा ! वाउकाये सव्वसुहुमे, वाउकाये सव्वसुहुमतराए। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७६५
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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