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________________ ७७६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अन्य सब बातें पृथ्वीकायिक जीवों के समान हैं। अग्निकायिक जीवों के विषय में भी उत्पाद स्थिति और उद्वर्त्तना को छोड़ कर अन्य सब बातें पृथ्वीकायिकवत् हैं। अग्निकायिक जीव तिर्यञ्च और मनुष्य में से आकर उत्पन्न होते हैं। उनकी उत्कृष्ट स्थिति तीन अहोरात्र की होती है। अग्निकाय से निकल (उद्वर्त्तन) कर जीव तिर्यचों में ही उत्पन्न होते हैं। वायुकायिक और अग्निकायिक जीवों की शेष बातें पृथ्वीकायिकवत् हैं। विशेष यह है कि पृथ्वीकायिक जीवों में आदि की चार लेश्याएँ होती हैं, जबकि अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों में आदि की तीन अप्रशस्त लेश्याएँ होती हैं। पृथ्वीकायिक जीवों में आदि के तीन समुद्घात ( वेदना, कषाय और मारणान्तिक) होते हैं, जबकि वायुकाय में वैक्रियशरीर के सम्भव होंने से वेदना, कषाय, मारणान्तिक और वैक्रिय, ये चार समुद्घात होते हैं । वनस्पतिकायिकों में अनन्त वनस्पतिकायिक जीव मिलकर एक साधारण शरीर बांधते हैं, फिर आहार करते हैं । यहाँ वनस्पतिकायिक जीवों का आहार नियमत: छह दिशाओं का बताया है, वह बादर निगोद (साधारण) वनस्पतिकाय की अपेक्षा सम्भवित है। सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव लोकान्त के निष्कुटों (कोणों) में भी होते हैं, उनके तीन, चार या पांच दिशाओं का आहार भी सम्भवित है । बादर निगोद वनस्पतिकायिक जीव लोकान्त के निष्कुटों में नहीं होते, किन्तु वे लोक के मध्यभाग में होते हैं।' एकेन्द्रिय जीवों का जघन्य - उत्कृष्ट अवगाहना की अपेक्षा अल्पबहुत्व २२. एएसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाय० वाउका० वणस्सतिकाइयाणं सुहुमाणं बादराणं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाणं जाव जहन्नुक्कोसियाए ओगाहणाए कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमनिओयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा ? सुहुमवाउकाइयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा २ । सुहुमतेउकाइयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ३ । सुहुमआउकाइयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ४। सुहुमपुढविका अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ५ । बादरवाउकाइयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ६ । बादरतेउकाइयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ७ । बादरवाउ० अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ८ । बादरपुढविकाइयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ९ । पत्तेयसरीरंबादरवणस्सइकाइयस्स बादरनिओयस्स य, एएसि णं अपज्जत्तगाणं जहन्निया ओगाहणा दोह वितुल्ला असंखेज्जगुणा १०-११ । सुहुमनिगोयस्स पज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा १२ । तस्सेव अपज्जत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया १३ । तस्स चेव पज्जत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया १४ । सुहुमवाउकाइयस्स पज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा १५ । तस्स चेव अपज्जत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया १६ । तस्स चेव पज्जत्तगस्स उक्कोसिया० १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७६४ (ख) भगवती विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. ६, पृ. २७८०-८१
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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