________________
७४६
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन–अवधिज्ञानी, परमावधिज्ञानी और केवलज्ञानी के युगपत् ज्ञान-दर्शन की शक्ति विषयक प्ररूपणा—आधोऽवधिक का अर्थ है—सामान्य अवधिज्ञानी, परमावधिक का अर्थ है— उत्कृष्ट अवधिज्ञानी। परमावधिक को अन्तर्मुहूर्त में अवश्यमेव केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है। परस्पर विरुद्ध दो धर्म वालों का एक ही काल में एक स्थान में होना संभव नहीं होता तथा ज्ञान और दर्शन दोनों की क्रिया एक ही समय में नहीं होती, क्योंकि समय सूक्ष्मतम काल है, आँख की पलक झपकने में असंख्यात समय व्यतीत हो जाते हैं। जैसे कमल के सौ पत्तों को सूई से भेदने की प्रतीति तो एक साथ एक ही काल की होती है, परन्तु कमल के सौ पत्तों के एक साथ भेदने में भी असंख्यात समय लग जाते हैं।
॥अठारहवाँ शतक : आठवाँ उद्देशक समाप्त॥
०००
१
(क) भगवती. अ. वृत्ति पत्र ७५३ - (ख) प्रमाणनयतत्त्वालोक परि. १