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________________ ७२२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [८] इसी प्रकार नैरयिकों के भी तीन प्रकार की उपधि होती है। ९. एवं निरवसेसं जाव वेमाणियाणं। [९] इसी प्रकार अवशिष्ट सभी जीवों के, यावत् वैमानिकों तक के तीनों प्रकार की उपधि होती है। १०. कतिविधे णं भंते ! परिग्गहे पन्नत्ते ? गोयमा! तिविहे परिग्गहे पन्नत्ते, तं जहा—कम्मपरिग्गहे सरीरपरिग्गहे बाहिरगभंडमत्तोवगरणपरिग्गहे। [१० प्र.] भगवन् ! परिग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? [१० उ.] गौतम! परिग्रह तीन प्रकार का कहा गया है, यथा-(१) कर्म-परिग्रह, (२) शरीर-परिग्रह और (३) बाह्यभाण्डमात्रोपकरण-परिग्रह। ११. नेरतियाणं भंते ! ०? एवं जहा उवहिणा दो दंडगा भणिया तहा परिग्गहेण वि दो दंडगा भाणियव्वा। [११ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों में कितने प्रकार का परिग्रह कहा गया है ? [११ उ.] गौतम! जिस प्रकार (नैरयिकों आदि की) उपधि के विषय में दो दण्डक कहे गए हैं, उसी प्रकार परिग्रह के विषय में भी दो दण्डक कहने चाहिए। विवेचन-उपधि और परिग्रह : स्वरूप प्रकार और चौवीस दण्डकों में प्ररूपणा—उपधि का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ इस प्रकार है-'उपधीयते-उपष्टभ्यते आत्मा येन स उपधिः' अर्थात् जिससे आत्मा शुभाशुभ गतियों में स्थिर की जाती है, वह उपधि है। उपधि की परिभाषा है—जीवननिर्वाह में उपयोगी शरीर, कर्म एवं वस्त्रादि । यह दो प्रकार की है। आभ्यन्तर और बाह्य। कर्म और शरीर आभ्यन्तर उपधि है जबकि वस्त्र पात्रादि वस्तुएँ बाह्य उपधि हैं। उपधि के तीन भेदों में एकेन्द्रिय को छोड़कर शेष १९ दण्डकवर्ती जीवों के शरीररूप, कर्मरूप और बाह्यभाण्डमात्रोपकरणरूप उपधि होती है। एकेन्द्रिय के बाह्यभाण्डमात्रोपकरणउपधि नहीं होती। नैरयिकादि जीवों के सचित्त उपधि शरीर आदि है, अचित्त उपधि उत्पत्तिस्थान है और मिश्रउपधि श्वासोच्छ्वासादिपुद्गलों से युक्त शरीर है, जो सचेतन-अचेतन दोनों रूप होने से मिश्रउपधि है। उपधि और परिग्रह में अन्तर—इतना ही है कि जीवन-निर्वाह में उपकारक कर्म, शरीर और वस्त्रादि उपधि कहलाते हैं, और वे ही जब ममत्वबुद्धि से गृहीत होते हैं, तब परिग्रह कहलाते हैं । उपधि के सम्बन्ध में जैसी प्ररूपणा की गई है, वैसी ही प्ररूपणा परिग्रह के सम्बन्ध में समझनी चाहिए। १. (क)भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७५० (ख) भगवतीसूत्र (गुजराती अनुवादः पं. भगवानदास दोशी) खण्ड ४, पृ. ६४ २. वही, (पं. भगवानदास दोशी) खण्ड ४, पृ. ६५
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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