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अठारहवाँ शतक : उद्देशक-६
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स्कन्धों के विषय में स्वयं ऊहापोह करके घटित कर लेना चाहिए।
सूक्ष्म अनन्तप्रदेशी स्कन्ध में चार स्पर्श—पूर्वोक्त शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष, ये चार स्पर्श पाए जाते हैं।
बादर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध में चार से आठ स्पर्श तक–चार हों तो मृदु और कर्कश में से कोई एक, गुरु और लघु में से कोई एक, शीत और उष्ण में से कोई एक और स्निग्ध एवं रूक्ष में से कोई एक, इस प्रकार चार स्पर्श पाए जाते हैं। पांच स्पर्श हों तो चार में से किसी भी युग्म के दो और शेष तीन युग्मों में से एक-एक। छह. स्पर्श हों तो दो युग्मों के दो-दो, और शेष दो युग्मों में से एक-एक, यों ६ स्पर्श पाए जाते हैं। सात स्पर्श हों तो तीन युग्मों के दो-दो और एक युग्म में से एक, और आठ स्पर्श हों तो चारों के दो-दो स्पर्श पाए जाते हैं। ॥ अठारहवाँ शतक : छठा उद्देशक समाप्त॥
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१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७४८-७४९
(ख) भगवती. विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. ६, पृ. २७१३