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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कुमारं सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहं निसीयावेति, नि० २ अट्ठसतेणं सोवणियाणं कलसाणं जाव' अट्ठसतेणं भोमेज्जाणं कलसाणं सव्विड्डीए जाव रवेणं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचति, म० अ० २ पम्हलसुकुमालाए सुरभीए गंधकासाईए गाताई लूहेति, पम्ह० लू० २ सरसेणं गोसीसेणं एवं जहेव जमालिस्स अलंकारो (स. ९ उ. ३३ सु. ५७) तहेव जाव कप्परुक्खगं पिव अलंकियविभूसियं करेति,क० २ करयल जाव कट्ट सिवभई कुमारं जएणं विजएणं वद्धावेति, जए० व० २ ताहिं इट्ठाहिं कंतांहिं पियाहिं जहा उववातिए कोणियस्स जाव परमायुं पालयाहि, इट्ठजणसंपरिवुडे हत्थिणापुरस्स नगरस्स अन्नेसिं च बहूणं गामागर-नगर जाव' विहराहि, त्ति कटु जयजयस पउंजति।
[१] यह हो जाने पर शिव राजा ने अनेक गणनायक, दण्डनायक यावत् सन्धिपाल आदि राज्यपुरुषपरिवार से युक्त होकर शिवभद्र कुमार को पूर्वदिशा की ओर मुख करके श्रेष्ठ सिंहासन पर आसीन किया। फिर एक सौ आठ सोने के कलशों से, यावत् एक सौ आठ मिट्टी के कलशों से, समस्त ऋद्धि (राजचिह्नों) के साथ यावत् बाजों के महानिनाद के साथ राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया। तदनन्तर अत्यन्त कोमल सुगन्धित गन्धकाषायवस्त्र (तौलिये) से उसके शरीर को पोंछा। फिर सरस गोशीर्षचन्दन का लेप किया; इत्यादि, जिस प्रकार (श. ९ उ. ३३ । सू. ५७ में) जमाली को अलंकार से विभूषित करने का वर्णन है, उसी प्रकार शिवभद्र कुमार को भी यावत् कल्पवृक्ष के समान अलंकृत और विभूषित किया, इसके पश्चात् हाथ जोड़ कर यावत् शिवभद्र कमार को जय-विजय शब्दों से बधाया और औपपातिक सूत्र में वर्णित कोणिक राजा के प्रकरणानुसार(शिवभद्रकुमार को) इष्ट, कान्त एवं प्रिय शब्दों द्वारा आशीर्वाद दिया, यावत् कहा कि तुम परम आयुष्मान् (दीर्घायु) हो और इष्ट जनों से युक्त होकर हस्तिनापुर नगर तथा अन्य बहुत से ग्राम, आकर, नगर आदि के, यावत् परिवार, राज्य और राष्ट्र आदि के स्वामित्व का उपभोग करते हुए विचरो; इत्यादि (आशीर्वचन) कह कर जय-जय शब्द का प्रयोग किया।
१०. तए णं से सिवभद्दे कुमारे राया जाते महया हिमवंत० वण्णओ जाव विहरति।
[१०] अब वह शिवभद्र कुमार राजा बन गया। वह महाहिमवान् पर्वत के समान राजाओं में प्रधान होकर विचरण करने लगा। यहाँ शिवभद्रराजा का वर्णन करना चाहिए।
विवेचन—शिवभद्र कुमार का राज्याभिषेक और आशीर्वचन—प्रस्तुत ४ सूत्रों (७ से १० तक) में शिव राजा द्वारा शिवभद्र कुमार के राज्याभिषेक की तैयारी के लिए कौटुम्बिक पुरुषों को आदेश का तथा उनके द्वारा राज्याभिषेक की समस्त तैयारी कर लेने पर शिव राजा द्वारा अपने समस्त राज्यपुरुष-परिवार के साथ
१. 'जाव' पद सूचित पाठ के लिए देखें-औपपातिक सूत्र ३१, पत्र ६६, आगमोदय। २. 'जाव' पद सूचित पाठ के लिए देखें-भगवती, श. ९, उ. ३३, सू. ४९ ३. जमाली के एतद्विषयक वर्णन के लिए देखें—श. ९, उ. ३३, सू. ५७ ४. इसके शेष वर्णन के लिए देखें-औपपातिक. कोणिकप्रकरण ५. इसके लिए देखें-औपपातिक सू. ३२, पत्र ७४, आगमोदय