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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
कप्पे पुढवि०।
एवं चेव ईसाणे वि।
[२ प्र.] भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरण-समुद्घात करके ईशानकल्प में पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले ...... ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न।
[२ उ.] गौतम! पूर्ववत् (सौधर्म के समान) ईशानकल्प में पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य जीवों के विषय में जानना चाहिए।
३. एवं जाव अच्चुए। [३] इसी प्रकार यावत् अच्युतकल्प के पृथ्वीकायिक के विषय में समझना चाहिए। ४. गेविजविमाणे अणुत्तरविमाणे ईसिपब्भाराए य एवं चेव। [४] ग्रैवेयकविमान, अनुत्तरविमान और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए।
५. पुढविकाइए णं भंते! सक्करप्पभाए पुढवीए समोहते, समोहन्नित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढवि०।
एवं जहा रयणप्पभाए पुढविकाइओ उववातिओ एवं सक्करप्पभापुढविकाइओ वि उववाएयव्वो जाव ईसिपब्भाराए।
_[५ प्र.] भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, शर्कराप्रभापृथ्वी में मरण-समुद्घात करके सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य है, इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् ?
[५ उ.] गौतम! जिस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों का उत्पाद कहा, उसी प्रकार शर्कराप्रभा के पृथ्वीकायिक जीवों का उत्पाद ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक जानना चाहिए।
६. एवं जहा रयणप्पभाए वत्तव्वता भणिया एवं जाव अहेसत्तमाए समोहतो ईसिपब्भाराए उववातेयव्वो। सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।
॥ सत्तरसमे सए : छट्ठो उद्देसओ समत्तो॥१७-६॥ [६] जिस प्रकार रत्नप्रभा के पृथ्वीकायिक जीवों की वक्तव्यता कही, उसी प्रकार यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में मरण-समुद्घात से समवहत जीव का ईषत्प्रग्भारापृथ्वी तक उत्पाद जानना चाहिए।
भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर (गौतमस्वामी) यावत् विचरते हैं। विवेचन–मरण-समुद्घात और पुद्गल-ग्रहण-जब जीव मरण-समुद्घात करके, अपने शरीर