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________________ ६२३ सत्तरहवाँ शतक : उद्देशक - २ प्राण के वध की विरति की है, उस जीव को 'एकान्तबाल' न कह कर, बालपण्डित कहना चाहिए, क्योंकि वह देशविरत है । जो देशविरत हो, उसे 'एकान्तबाल' कहना यथार्थ नहीं है । कठिन शब्दार्थ एगपाणाए— एक प्राणी के । दंडे — वध । अनिक्खित्ते — अनिक्षिप्त-छोड़ा नहीं है। आहंसु — कहा है। प्राणातिपात आदि में वर्तमान जीव और जीवात्मा की भिन्नता के निराकरणपूर्वक जैनसिद्धान्तसम्मत जीव और आत्मा की कथंचित् अभिन्नता का प्रतिपादन १७. अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति — “एवं खलु पाणाइवाए मुसावाए जाव मिच्छादंसणसल्ले वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया । पाणातिवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया । उप्पत्तियाए जाव पारिणामियाए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया । उग्गहे ईहा — अवाये धारणाए वट्टमाणस्स जाव जीवाया। उट्ठाणे जाव परक्कमे वट्टमाणस्स जाव जीवाया । नेरइयत्ते तिरिक्खमणुस्स-देवत्ते वट्टमाणस्स जाव जीवाया। नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए वट्टमाणस्स जाव जीवाया । एवं कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए, सम्मदिट्ठीए ३ । एवं चक्खुदंसणे ४४, आभिणिबोहियनाणे ५५, मतिअन्नाणे३, आहारसन्नाए४।" एवं ओरालियसरीरे ५ ।' एवं मणजोए ३ । सागारोवयोगे अणागारोवयोगे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया" से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छं ते एवमाहंसु । अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि एवं खलु पाणातिवाए जाव मिच्छादंसणसल्ले वट्टमाणस्स से चेव जीवे, से चेव जीवाया जाव अणागारोवयोगे वट्टमाणस्स से चेव जीवे, से चेव जीवाया।' `[ १७ प्र.] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शन- शल्य में प्रवृत्त ( वर्त्तते) हुए प्राणी का जीव अन्य है और उस जीव से जीवात्मा अन्य ( भिन्न) है । प्राणातिपात विरमण यावत् परिग्रह-विरमण में, क्रोधविवेक ( क्रोध-त्याग) यावत् मिथ्यादर्शन - शल्य-त्याग १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७२३ २. वही, अ. वृत्ति, पत्र ७२३ ३. ३ अंक - सूचित पाठ — 'मिच्छद्दिट्ठीए सम्मामिच्छद्दिट्ठीए । ' ४. ४ अंक - सूचित पाठ—' अचक्खुदंसणे ओहिदंसणे केवलदंसणे' ५. ५ अंक - सूचित पाठ 'सुतनाणे ओहिनाणे मणपज्जवनाणे केवलनाणे । ' ६. ३ अंक - सूचित पाठ- 'सुतअन्नाणे विभंगनाणे।' ७. ४ अंक - सूचित पाठ- 'भयसन्नाए परिग्गहसन्नाए मेहुणसन्नाए । ' ८. ५ अंक - सूचित पाठ— 'वेडव्वियसरीरे आहारगसरीरे तेयगसरीरे कम्मगसरीरे । ' ९. ३ अंक - सूचित पाठ' वइजोए कायजोए । '
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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