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________________ तइओ उद्देसओ : तृतीय उद्देशक पलासे : पलाश (के जीव-सम्बन्धी ) १. पलासे ण भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे, अणेगजीवे ? एवं उप्पलुद्देसगवत्तव्वया अपरिसेसा भाणितव्वा । नवरं सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं । देवा एएसु न उववज्जंति । लेसासु– ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा ? गोयमा ! कण्हलेस्सा वा, नीललेस्सा वा, काउलेस्सा वा, छव्वीसं भंगा। सेसं तं चेव । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० । ॥ एक्कारसमे सए तइओ उद्देसओ समत्तो ॥ ११.३॥ [१ प्र.] भगवन् ! पलाशवृक्ष (प्रारम्भ में) एक पत्ते वाला (होता है, तब वह ) एक जीव वाला होता है या अनेक जीव वाला ? [१ उ.] गौतम ! (इस विषय में भी) उत्पल - उद्देशक की सारी वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष इतना है कि पलाश के शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग है और उत्कृष्ट गव्यूति( गाऊ) - पृथक्त्व । देव च्यव कर पलाशवृक्ष में उत्पन्न नहीं होते । लेश्याओं के विषय में [प्र.] भगवन् ! वे (पलाशवृक्ष के ) जीव क्या कृष्णलेश्या वाले होते हैं, नीललेश्या वाले होते हैं या कापोतलेश्या वाले होते हैं ? [उ.] गौतम ! वे कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले और कापोतलेश्या वाले होते हैं । इस प्रकार यहाँ उच्छ्वासक द्वार के समान २६ भंग होते हैं। शेष सब पूर्ववत् है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है !, यह इसी प्रकार है !' ऐसा कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं । विवेचन — उत्पलोद्देशक के समान प्रायः सभी द्वार - पलाशवृक्ष के जीव में अवगाहना, उत्पत्ति और लेश्या इन तीन द्वारों को छोड़ कर शेष सभी द्वार उत्पलजीव के समान हैं, इस प्रकार का अतिदेश प्रस्तुत सूत्र में किया गया है । अवगाहना – पलाश की उत्कृष्ट अवगाहना गव्यूतिपृथकत्व है, यानी दो गाऊ (४ कोस) से १. गव्यूतिः क्रोशयुगम् — अमरकोष
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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