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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आदि प्राप्त करने के लिए मेरे विषय में कुछ भी बोलेंगे तो मैं भी उस सर्प की तरह उन्हें भस्म कर दूंगा। केवल तुम्हारी सुरक्षा करूंगा। यह बात तुम अपने धर्माचार्य ज्ञातपुत्र श्रमण से कह दो।'
कठिन शब्दों के विशेषार्थ—महं ओवमियं : दो अर्थ—(१) मेरे से सम्बन्धित उपमा–दृष्टान्त, या (२) महान्—विशिष्ट उपमा–दृष्टान्त। चिरातीताए-अद्धाए बहुत प्राचीन काल में। उच्चावयाउत्तम (विशिष्ट) और अनुत्तम (साधारण) । अत्थकंखिया प्राप्त अर्थ में निरन्तर इच्छा-आकांक्षा वाले। अत्थपिवासिया–अप्राप्त अर्थविषयक तृष्णा वाले। पणिय भंडे—पणित अर्थात्-व्यापार के लिए भाण्डमाल, किराना। भत्त-पाण-पत्थयणं-भक्त-भोजन, पान-पानी रूप पाथेय (मार्ग के लिए भाता)। अगामिय: दो रूप (१) अग्रामिक-ग्रामरहित, अथवा (२) अकामिकं—अनिष्ट । अणोहियंअगाध जल-प्रवाह (ओघ) से रहित। छिन्नावायं आवागमन से रहित। दीहमदं दीर्घ-लम्बे मार्ग या काल वाली। वप्पुओ—शरीर अर्थात् शिखर । अभिनिसढाओ केसरीसिंह के स्कन्ध की सटा (केसराल) के समान जिसके चारों ओर ऊँची-ऊँची सटाएँ (केसराल) निकली हैं। सुसंपगहियाओ—सुसंवृतअतिविस्तीर्ण नहीं। पणगद्धरूवाओ—अर्द्धसर्परूप, अर्थात्-उदर कटे हुए सर्प को पूँछ से ऊँचा किया हुआ सर्प अर्द्ध सर्प होता है, जिसका अधोभाग विस्तीर्ण और ऊपर का भाग पतला होता है। तणुयं—हल्का।
ओरालं—प्रधान । जच्चं—जात्य-उत्तम जाति का। उदगरयणं-उदकरत्न-जल की जाति में उत्कृष्ट । पज्जेति—पिलाया। तावणिजं–तापनीय–ताप सहने योग्य। महरिहं—महान् व्यक्तियों के योग्य । नित्तलंनिस्तल—अत्यन्त गोल। निस्सेयसिए—निःश्रेयस—कल्याण का इच्छुक। समुहियतुरियचबलं धमंतंकुत्ते के मुख की तरह आवाज करने में अति त्वरित और चपल शब्द करने वाला। एगाहच्चं—एक ही आहत—प्रहार या झटके में मार देने वाला। कूडाहच्चं कूट-पाषाणमय यंत्र के आघात के समान।
ति-उछल रही-चल रही हैं। गवंति–गाये जाते हैं। थवंति-स्तति की जाती हैं। तेवेणं तेएणंतपोजन्य तेज से अथवा तप से प्राप्त तेज-तेजोलेश्या से। वालेण–व्याल-सर्प ने। सारक्खामि जलने से बचाऊंगा। संगोवयामि-क्षेम–सुरक्षित स्थान पर पहुंचा कर रक्षा करूंगा। गोशालक के साथ हुए वार्तालाप का निवेदन, गोशालक के तप-तेज के सामर्थ्य का प्ररूपण, श्रमणों को उसके साथ प्रतिवाद न करने का भगवत्सन्देश
६६. तए णं से आणंदे थेरे गोसालेणं. मंखलिपुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे भीए जाव संजायभये
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २ (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. ७०५ से ७०९ २. वल्मीक में जल की संभावना—इस प्रकार के भूमि के गर्त में पानी होता है, अतः वल्मीक में अवश्य ही गर्त (गड्ढे) होने चाहिए। शिखर को तोड़ने से गर्त प्रकट हो जाएगा, और वहाँ जल अवश्य होगा, ऐसी संभावना की गई है।
- भगवती. अ., वृत्ति, पत्र ६७२ ३. (क) भगवती. अ. वृत्ति. पत्र ६७१ से ६७३ तक
(ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २४०३ से २४१२ तक