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चौदहवाँ शतक : उद्देशक - ८
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गोयमा ! असंखेजाइं जोयणाइं जाव' अंतरे पण्णत्ते ।
[६ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्कविमानों और सौधर्म - ईशानकल्पों का आबाधा - अन्तर कितना कहा गया है ?
[६ उ. ] गौतम ! इनका अबाधान्तर यावत् असंख्यात योजन कहा गया है।
७. सोहम्मीसाणाणं भंते ! सणंकुमार - माहिंदाण य केवतियं० ?
एवं चेव ।
[७ प्र.] भगवन् ! सौधर्म - ईशानकल्प और सनत्कुमार- माहेन्द्रकल्पों का कितना अबाधान्तर कहा गया है ?
[७ उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत्) जानना चाहिए ।
८. सणकुमार - माहिंदाणं भंते ! बंभलोगस्स य कप्पस्स केवतियं० ?
एवं चेव ।
[८ प्र.] भगवन् ! सनत्कुमार - माहेन्द्रकल्प और ब्रह्मलोककल्प का अबाधान्तर कितना कहा गया है ?
[८ उ.] गौतम ! इनका अबाधान्तर भी पूर्ववत् है ।
९. बंभलोगस्स णं भंते ! लंतगस्स य कप्पस्स केवतियं० ?
एवं चेव ।
[९ प्र.] भगवन् ! ब्रह्मलोककल्प और लान्तककल्प के अबाधान्तर के विषय में (पूर्ववत्) प्रश्न । [९ उ.] गौतम ! (इन दोनों का अबाधान्तर पूर्ववत्) इसी प्रकार (समझना चाहिए।)
१०. लंतयस्स णं भंते! महासुक्कस्स य कप्पस्स केवतियं० ?
एवं चेव ।
[१० प्र.] भगवन् ! लान्तककल्प और महाशुक्र कल्प का अबाधान्तर कितना है ? [१० उ. ] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत्) जानना चाहिए।
११. एवं महासुक्कस्स सहस्सारस्स य ।
१. 'जाव' पद सूचक प्रज्ञापनासूत्रपाठ — "कहि णं भंते ! सोहम्मगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! सोहम्मगदेवा परिवसंति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्डुं चंदिम- सूरिय-गह - नक्खत्त - तारारूवाणं बहूणि जोयणसयाणि बहूई
सहस्सा बहूई जोयणसतसहस्साइं बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता एत्थ णं सोहम्मे णामं कप्पे पण्णत्ते० "
— श्री महावीर जैन विद्यालय द्वारा प्रकाशित 'पण्णवणासुत्तं भाग १' पृ. ७०, सू० १९७ [१] ॥