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पढमो उद्देसओ : प्रथम उद्देशक
उप्पल : उत्पल ( उत्पलजीव चर्चा) [२-द्वार-संग्रह-गाथाएँ] २. उववाओ १ परिमाणं २ अवहारुच्चत्त ३-४ बंध ५ वेदे ६ य।
उदए ७ उदीरणाए ८ लेसा ९ दिट्ठी १० य नाणे ११ य ॥२॥ जोगुवओगे १२-१३ वण्ण-रसमाइ १४ ऊसासगे १५ य आहारे १६। विरई १७ किरिया १८ बंधे १९ सण्ण २० कसायित्थि २१-२२ बंधे २३ य ॥३॥ सणिणदिय २४-२५ अणुबंधे २६ संवेहाऽऽहार २७-२८ ठिइ २९ सम्मुग्घाए ३०।
चयणं ३१ मूलादीसु य उववाओ सव्वजीवाणं ३२॥४॥ १. उपपात, २. परिमाण, ३. अपहार, ४. ऊँचाई (अवगाहना), ५. बन्धक, ६. वेद, ७. उदय, ८. उदीरणा, ९. लेश्या, १०. दृष्टि, ११. ज्ञान, १२. योग, १३. उपयोग, १४. वर्ण-रसादि, १५. उच्छ्वास, १६. आहार, १७. विरति, १८. क्रिया, १९. बन्धक, २०. संज्ञा, २१. कषाय, २२. स्त्रीवेदादि, २३. बन्ध, २४. संज्ञी, २५. इन्द्रिय, २६. अनुबन्ध, २७. संवेध, २८. आहार, २९. स्थिति, ३०. समुद्घात, ३१. च्यवन और ३२. सभी जीवों का मूलादि में उपपात।
विवेचन-बत्तीसद्वारसंग्रह–प्रस्तुत द्वितीय सूत्र में क्रमश: तीन गाथाओं में प्रथम उद्देशक में प्रतिपाद्य विषयों का नामोल्लेख किया गया है।
ये संग्रहगाथाएं अन्य प्रतियों में मूल में नहीं पाई जातीं। अभयदेवीय वृत्ति में ये वाचनान्तर कह कर उद्धृत की गई हैं।
बन्धक शब्द यहाँ दो बार प्रयुक्त किया गया है, प्रथम बंधक द्वार में एक जीव कर्म-बन्धक है या अनेक जीव कर्मबन्धक ? इसकी चर्चा है । द्वितीय बन्धक द्वार में सप्तविधबन्धक है, या अष्टविधबन्धक ? यह चर्चा है। तीसरे बन्धद्वार में स्त्रीवेदबन्धक पुरुषवेदबन्धक या नपुंसकवेदबन्धक ? इसकी चर्चा है। १. उपपातद्वार
३. तेणं कालेणं तेणं समए णं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी
[३] उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा
४. उप्पले णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे ?
गोयमा ! एगजीवे, नो अणेगजीवे। तेण परं जे अन्ने जीवा उववजति ते णं णो एगजीवा, अगेणजीवा।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. २, पृ. ५०६