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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
५. एवं सुवण्णपेलं, एवं रयणपेलं, वइलपेलं, वत्थपेलं, आभरणपेलं ।
[५] इसी प्रकार स्वर्णमंजूषा, रत्नमंजूषा, वज्र (हीरक) मंजूषा, वस्त्रमंजूषा एवं आभरण-मंजूषा (हाथ में लेकर वैक्रियशक्ति से आकाश में उड़ सकता है,) इत्यादि (प्रश्नोत्तर) पूर्ववत् (करना चाहिए।)
६. एवं वियलकिडं, सुंबकिडं चम्मकिडं कंबलकिडं ।
[६] इसी प्रकार विदलकट (बाँस की चटाई), शुम्बकट (वीरणघास की चटाई), चर्मकट ( चमड़े से बुनी हुई चटाई या खाट आदि) एवं कम्बलकट (ऊन के कम्बल का बिछौना ) ( इन सभी रूपों की विकुर्वणा करके हाथ में लेकर ऊँचे आकाश में उड़ सकता है, इत्यादि प्रश्नोत्तर पूर्ववत् कहना चाहिए ।)
७. एवं अयभारं तंबभारं तउयभारं सीसगभारं हिरण्णभारं सुवण्णभारं वइरभारं ।
[७] इसी प्रकार लोहे का भार, ताम्बे का भार, कलई (कथीर) का भार, शीशे का भार, हिरण्य (चांदी) भार, सोने का भार और वज्र (हीरे) का भार ( लेकर इन सब रूपों की विक्रिया करके ऊँचे आकाश में उड़ सकता है, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्नोत्तर कहना चाहिए।)
विवेचन — प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. १ से ७ तक) में भावितात्मा अनगार की वैक्रियशक्ति के सम्बन्ध में विभिन्न प्रश्नोत्तर किये गये हैं कि वह वैक्रियशक्ति से विकुर्वणा करके रज्जुबद्धघटिका, अनेक घटिकाएं तथा हिरण्य, स्वर्ण, रत्न, वज्र, वस्त्र एवं आभरण की मंजूषा तथा विदल, शुम्ब, चर्म एवं कम्बल का कट तथा लोहे, ताम्बे, कथीर, शीशे, चांदी, सोने और वज्र का भार स्वयं हाथ में लेकर ऊँचे आकाश में उड़ सकता है या नहीं ? सभी प्रश्नों के विषय में भगवान् का उत्तर एक सदृश स्वीकृतिसूचक है ।
कठिन शब्दों के अर्थ केयाघडियं— किनारे पर रस्सी से बंधी हुई घटिका — छोटी घडिया | केयाघडियाकिच्च - हत्थगतेणं — केयाघटिका रूप कृत्य (कार्य) को स्वयं हस्तगत करके ( हाथ में लेकर) । वेहासं—आकाश में। उप्पएज्जा — उड़ सकता है। हिरण्णपेलं - चांदी की पेटी — मंजूषा । सुवण्णपेलं - सोने की पेटी । रयणपेलं रत्नों की पेटी । वइरपेलं - वज्र — हीरों की पेटी । वियलकिडं—विदल अर्थात् बांस को चीर कर उसके टुकड़ों से बनाई हुई कट— चटाई | सुंबकिडं — वीरणघास की चटाई | चम्मकिडंचमड़े से बनी हुई चटाई, खाट आदि । कंबलकिडं — ऊन का बना हुआ बिछाने का कम्बल । अयभारं — लोहे का भार । तउयभारं— रांगे या कथीर का भार । सीसगभारं— शीशे का भार । वइरभारं वज्रभार — हीरे का भार । चमचेड़- यज्ञोपवीत- जलौका - बीजंबीज - समुद्र - वायस आदि की क्रियावत् भावितात्मा वैक्रिय-शक्तिनिरूपण
८. से जहानामए वग्गुली सिया, दो वि पाए उल्लंबिया उल्लंबिया उडूंपादा अहोसिरा चिट्ठेज्जा
१. वियाहपतिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पण) भा. २, पृ. ६५३
२. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६२७