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तेरहवां शतक : उद्देशक-६
३२१ [१०] उस वीतिभय नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशाभाग (ईशानकोण) में मृगवन नामक उद्यान था। वह सभी ऋतुओं के पुष्प आदि से समृद्ध था, इत्यादि वर्णन (करना चाहिए।)
११. तत्थ णं वीतीभए नगरे उदायणे नामं राया होत्था, महया० वण्ओ ।*
[११] उस वीतिभय नगर में उदायन नामक राजा था। वह महान् हिमवान् (हिमालय) पर्वत के समान था, ( इत्यादि सब) वर्णन (करना चाहिए।)
१२-१३. तस्स णं उदायणस्स रण्णो पभावती नामं देवी होत्था। सुकुमाल० वण्णओ, जाव विहरति।
[१२-१३] उस उदायन राजा की प्रभावती नाम की देवी (पटरानी) थी। वह सुकुमाल (हाथ-पैरों वाली) थी, इत्यादि वर्णन यावत्-विचरण करती थी, (यहाँ तक) करना चाहिए।
१४. तस्स णं उदायणस्स रण्णो पुत्ते पभावतीए देवीए अत्तए अभीयी नाम कुमारे होत्था। सुकुमाल. जहा सिवभद्दे ( स० ११ उ० ९ सु० ५) जाव पच्चुवेक्खमाणे विहरइ।
[१४] उस उदायन राजा का पुत्र और प्रभावती देवी का आत्मज अभीचि नामक कुमार था। वह सुकुमाल था। उसका शेष वर्णन (शतक ११ उ. ९ सू. ५ में उक्त) शिवभद्र के समान यावत् वह राज्य का निरीक्षण करता हुआ रहता था, (यहाँ तक) जानना चाहिए।
१५. तस्स णं उदायणस्स रण्णो नियए भाइणेजे केसी नाम कुमारे होत्था, सुकुमाल० जाव
सुरूवे।
[१५] उस उदायन राजा का अपना (सगा) भानजा केशी नामक कुमार था। वह भी सुकुमाल यावत् सुरूप था।
१६. से णं उदायणे राया सिंधुसोवीरप्पामोक्खाणं सोलसण्हं जणवयाणं, वीतीभयप्पामोक्खाणं तिण्हं तेसट्ठीणं नगरागरसयाणं महेसणप्पामोक्खाणं दसण्हं राईणं बद्धमउडाणं विदिण्णछत्त-चामरवालवीयणाणं, अन्नेसिं च बहूणं राईसर-तलवर-जाव सत्थवाहप्पभितीणं आहेवच्चं पोरेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरति।
[१६] वह उदायन राजा सिन्धुसौवीर आदि सोलह जनपदों (देशों) का, वीतिभय-प्रमुख तीन सौ त्रेसठ नगरों और आकरों का स्वामी था। जिन्हें छत्र, चामर और बाल-व्यजन (पंखे) दिये गए थे, ऐसे महासेन-प्रमुख दस मुकुटबद्ध राजा तथा अन्य बहुत-से राजा, ऐश्वर्यसम्पन्न व्यक्ति, (अथवा युवराज), तलवर (कोतवाल), यावत् सार्थवाह-प्रभृति जनों पर आधिपत्य करता हुआ तथा राज्य का पालन करता हुआ यावत् विचरता था। वह जीव-अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता यावत् श्रमणोपासक था।
विवेचन—प्रस्तुत आठ सूत्रों (सू. ९ - १६) में सिन्धु-सौवीर जनपद, उनकी राजधानी वीतिभयनगर, उसके शासक उदायन नृप, उसके राजपरिवार तथा उसके अधीनस्थ राजाओं आदि का संक्षिप्त परिचय दिया