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________________ ३१८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चंचाए रायहाणीए दाहिणपच्चत्थिमेणं छक्कोडिसए पणपन्नं च कोडीओ पणतीसं च सयसहस्साई पन्नासं च सहस्साइं अरुणोदगसमुदं तिरियं वीतीवइत्ता एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमारण्णो चमरचंचे नामं आवासे पण्णत्ते, चउरासीतिं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, दो जोयणसयसहस्सा पन्नटुिं च सहस्साई छच्च बत्तीसे जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। से णं एगेणं पागारेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते। से णं पागारे दिवढं जोयणसयं उड्डूं उच्चत्तेणं, एवं चमरचंचा रायहाणीवत्तव्वया भाणियव्वा सभाविहूणा जाव चत्तारि पासायपंतीओ। [५ प्र.] भगवन् ! असुरेन्द्र और असुरकुमारराज 'चमर' का 'चमरचंच' नामक आवास कहाँ कहा गया है ? [५ उ.] गौतम ! जम्बूद्वीप में मन्दर (मेरु) पर्वत से दक्षिण में तिरछे असंख्य द्वीप-समुद्रों को पार करने के बाद, जैसे कि द्वितीय शतक के आठवें उद्देशक (सू. १) में कहा गया है (अरुणवर द्वीप की बाह्य वेदिका के अन्त से अरुणवर समुद्र में बयालीस हजार योजन जाने के बाद चमरेन्द्र का तिगिञ्छक कूट नामक उपपात-पर्वत आता है। उससे दक्षिण दिशा में ६५५ करोड़, ३५ लाख, ५० हजार योजन दूर अरुणोदक समुद्र में तिरछा जाने के बाद नीचे रत्नप्रभा पृथ्वी के भीतर ४० हजार योजन गहरे जाने पर चमरेन्द्र की चमरचंचा नाम की राजधानी है; इत्यादि) यह समग्र वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए। यहाँ विशेष अन्तर इतना ही है कि यावत् तिगिञ्छकूट के उपपात-पर्वत का, चमरचंचा राजधानी का, चमरचंच नामक आवास-पर्वत का और अन्य बहुत-से द्वीप आदि तक का शेष सब वर्णन उसी प्रकार कहना चाहिए; यावत् (तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन गाऊ, दो सौ अठाईस धनुष और) कुछ विशेषाधिक साढे तेरह अंगुल (चमरचंचा राजधानी की) परिधि है। चमरचंचा राजधानी से दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्यकोण) में ६५५ करोड़, ३५ लाख ५० हजार योजन दूर . अरुणोदक समुद्र में तिरछे पार करने के बाद वहाँ असुरेन्द्र एवं असुरकुमारों के राजा चमर का चमरचंच नामक आवास कहा गया है। जो लम्बाई-चौड़ाई में ८४ हजार योजन है। उसकी परिधि (चारों ओर से घेरा) दो लाख पैंसठ हजार छह सौ बत्तीस योजन से कुछ अधिक है। यह आवास एक प्राकार (परकोटे) से चारों ओर से घिरा हुआ है। वह प्राकार ऊँचाई में डेढ़ सौ योजन ऊँचा है। इस प्रकार चमरचंचा राजधानी की सारी वक्तव्यता, सभा को छोड़कर, यावत् चार प्रासाद-पंक्तियाँ हैं, (यहाँ तक) कहनी चाहिए। ६.[१] चमरे णं भंते ! असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचे आवासे वसहिं उवेति ? नो इणढे समढे। [६-१ प्र.] भगवन् ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर क्या उस 'चमरचंच' आवास में निवास करके रहता है ? [६-१ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। [२] से केणं खाइ अटेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'चमरचंचे आवासे, चमरचंचे आवासे' ? गोयमा ! जे जहानामए इहं मणुस्सलोगंसि उवगारियलेणा इ वा, उज्जाणियलेणा इ वा, निजाणियलेणा इ वा, धारवारियलेणा इ वा, तत्थ णं बहवे मणुस्सा य मणुस्सीओ आसयंति सयंति
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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