SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र धर्मास्तिकाय द्रव्य अवगाढ होता है, वहाँ धर्मास्तिकाय का अन्य एक भी प्रदेश अवगाढ नहीं होता। क्योंकि उसमें प्रदेशान्तरों का अभाव है । अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय के वहाँ असंख्येय प्रदेश अवगाढ होते हैं । जीवास्तिकाय, पुदगलास्तिकाय और अद्धासमय के अनन्त प्रदेश होते हैं, इसलिए इन पर अनन्त प्रदेश अवगाढ होते हैं। पांच एकेन्द्रियों का परस्पर अवगाहना-निरूपण: दसवाँ जीवावगाढद्वार ६४. [ १ ] जत्थ णं भंते ! एगे पुढविकाइए ओगाढे तत्थ केवतिया पुढविकाइया ओगाढा ? असंखेज्जा । [६४-१ प्र.] भगवन् ! जहाँ एक पृथ्वीकायिक जीव अवगाढ होता है, वहाँ दूसरे कितने पृथ्वीकायिक जीव अवगाढ होते हैं ? [६४-१ उ.] (गौतम ! वहाँ ) असंख्य (पृथ्वीकायिक जीव अवगाढ होते हैं ।) [२] केवतिया आउक्काइया ओगाढा ? असंखेज्जा । [६४-२ प्र. ] (भगवन् ! वहाँ) कितने अप्कायिक जीव अवगाढ होते हैं ? [६४-२ उ. ] (गौतम ! वहाँ अप्कायिक) असंख्य जीव (अवगाढ होते हैं ।) [३] केवतिया तेउकाइया ओगाढा ? असंखेज्जा । [६४-३ प्र.] (भगवन् ! वहाँ) कितने तेजस्कायिक जीव अवगाढ़ होते हैं ? [६४-३ उ.] ( गौतम ! वहाँ तेजस्काय के) असंख्य जीव (अवगाढ होते हैं ।) [ ४ ] केवतिया वाउ० ओगाढा ? असंखेज्जा । [६४-४ प्र.] (भगवन् ! वहाँ ) वायुकायिक जीव कितने अवगाढ होते हैं ? [६४-४ उ. ] ( गौतम ! वहाँ ) असंख्य जीव ( अवगांढ होते हैं ।) [५] केवतिया वणस्सतिकाइया ओगाढा ? अनंता । [६४-५ प्र.] (भगवन् ! वहाँ) कितने वनस्पतिकायिक जीव अवगाढ होते हैं ? १. (क) भगवती. अ. वृत्ति पत्र ६१५ (ख) भगवतीसूत्र (हिन्दीविवेचन ) भा. ५, पृ. २२२१
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy