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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
तेसु णं नरएसु नेरइया अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइएहिंतो अप्पकम्मतरा चेव, अप्पकिरिय० ४; नो तहामहाकम्मतरा चेव, महाकिरिय० ४; महिड्डियतरा चेव महज्जुतियतरा चेव; नो तहा— अप्पिड्डियतरा चेव, अप्पज्जुतियतरा चेव ।
छट्ठा णं तमा पुढवीए नरगा पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए नरएहिंतो महत्तरा चेव० ४; नो तहा महप्पवेसणतरा चेव० ४; । तेसु णं नरएसु नेरइया पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए नेरइएहिंतो महाकम्मतरा चेव० ४; नो तहा अप्पकम्मतरा चेव० ४; अप्पिड्डियतरा चेव अप्पजुइयतरा चेव; नो तह महिड्डियतरा चेव० २।
[३] छठी तम: प्रभापृथ्वी में पांच कम एक लाख नारकावास कहे गए हैं। वे नारकावास अधः सप्तमपृथ्वी के नारकावासों के जैसे न तो महत्तर हैं और न महाविस्तीर्ण हैं; न ही महान् अवकाश वाले हैं और न शून्य स्थान वाले हैं। वे (सप्तम नरकपृथ्वी के नारकावासों की अपेक्षा) महाप्रवेश वाले हैं, संकीर्ण हैं, व्याप्त हैं, विशाल हैं। उन नारकावासों में रहे हुए नैरयिक अधः सप्तम पृथ्वी के नैरयिकों की अपेक्षा अल्पकर्म, अल्पक्रिया, अल्प-आश्रव और अल्पवेदना वाले हैं । वे अधःसप्तमपृथ्वी के नारकों के समान महाकर्म, महाक्रिया, महाश्रव और महावेदना वाले नहीं हैं। वे उनकी अपेक्षा महान् ऋद्धि और महाद्युति वाले हैं, किन्तु वे उनकी तरह अल्पऋद्धि वाले और अल्पद्युति वाले नहीं हैं।
छठी तम:प्रभानरकपृथ्वी के नारकावास पांचवी धूमप्रभानरकपृथ्वी के नारकावासों से महत्तर, महाविस्तीर्ण, महान् अवकाश वाले, महान् रिक्त स्थान वाले हैं। वे पंचम नरकपृथ्वी के नारकावासों की तरह महाप्रवेश वाले, आकीर्ण (व्याप्त), व्याकुलतायुक्त एवं विशाल नहीं हैं। छठी पृथ्वी के नारकावासों के नैरयिक पांचवीं धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की अपेक्षा महाकर्म, महाक्रिया, महाश्रव तथा महावेदना वाले हैं। उनकी (पांचवीं धूमप्रभा के नारकों की) तरह वे अल्पकर्म, अल्पक्रिया, अल्पाश्र्व एवं अल्पवेदना वाले नहीं हैं तथा वे उनसे अल्पऋद्धि वाले और अल्पद्युति वाले हैं, किन्तु महाऋद्धि वाले और महाद्युति वाले नहीं हैं।
४. पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए तिन्नि निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता ।
[४] पांचवीं धूमप्रभा पृथ्वी में तीन लाख नारकावास कहे गए हैं।
५. एवं जहा छट्टाए भणिया एवं सत्त वि पुढवीओ परोप्परं भण्णंति जाव रयणप्पभ त्तिं । जाव नो तहा महिड्डियतरा चेव अप्पज्जुतियतरा चेव ।
[५] इसी प्रकार जैसे छठी तमः प्रभा पृथ्वी के विषय में परस्पर तारतम्य बताया, वैसे सातों नरकपृथ्वियों के विषय के परस्पर तारतम्य, यावत् रत्नप्रभा तक कहना चाहिए, वह पाठ यावत् शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिक, रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की अपेक्षा महाऋद्धि और महाद्युति वाले नहीं हैं। वे उनकी अपेक्षा अल्पऋद्धि और अल्पद्युति वाले हैं, (यहाँ तक) कहना चाहिए।
विवेचन—नारकावासों की परस्पर तरतमता — प्रस्तुत ५ सूत्रों (सू. १ से ५ तक) में सातों नरकपृथ्वियों के नारकावासों की संख्या, विशालता, विस्तार, अवकाश, स्थानरिक्तता, प्रवेश, संकीर्णता, व्यापकता, कर्म,