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तेरहवां शतक : उद्देशक-२
२६७ कल्पवासी, ग्रैवेयक एवं अनुत्तर देवों की विमानावास-संख्या, विस्तार एवं उत्पत्ति आदि की प्ररूपणा
१२. सोहम्मे णं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावाससयसहस्सा पन्नत्ता ? गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पनत्ता। [१२ प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प (प्रथम देवलोक) में कितने लाख विमानावास कहे गए हैं ? [१२ उ.] गौतम ! (इसमें) बत्तीस लाख विमानावास कहे हैं। १३. ते णं भंते ! किं संखेजवित्थडा, असंखेजवित्थडा? गोयमा ! संखेजवित्थडा वि, असंखेजवित्थडा वि। [१३ प्र.] भगवन् ! वे विमानावास संख्येय विस्तृत हैं या असंख्येय विस्तृत ? [१३ उ.] गौतम ! वे संख्येय विस्तृत भी हैं और असंख्येय विस्तृत भी हैं।
१४. सोहम्मे णं भंते ! कप्पे बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु विमाणेसु एगसमएणं केवतिया सोहम्मा देवा उववजंति ? केवतिया तेउलेस्सा उववज्जति ?
एवं जहा जोतिसियाणं तिन्नि गमा तहेव भाणियव्वा, नवरं तिसु वि संखेजा भाणियव्वा ओहिनाणी ओहिदंसणी य चयावेयव्वा। सेसं तं चेव। असंखेजवित्थडेसु एवं चेव तिन्नि गमा, नवरं तिसु वि गमएसु असंखेजा भाणियव्वा। ओहिनाणी ओहिदंसणी य संखेजा चयंति। सेसं तं चेव।
[१४ प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प के बत्तीस लाख विमानावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले विमानों में एक समय में कितने सौधर्मदेव उत्पन्न होते हैं ? और तेजोलेश्या वाले सौधर्मदेव कितने उत्पन्न होते हैं ?
[१४ उ.] जिस प्रकार ज्योतिष्कदेवों के विषय में तीन (उत्पाद, उद्वर्तन और सत्ता) आलापक कहे, उसी प्रकार यहाँ भी तीन आलापक कहने चाहिए। विशेष इतना है कि तीनों आलापकों में 'संख्यात' पाठ कहना चाहिए तथा अवधिज्ञानी-अवधिदर्शनी का च्यवन भी कहना चाहिए। इसके अतिरिक्त शेष सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिए।
___ असंख्यात योजन विस्तृत सौधर्म-विमानावासों के विषय में भी इसी प्रकार तीनों आलापक कहने चाहिए। विशेष इतना है कि इसमें ('संख्यात' के बदले) 'असंख्यात' कहना चाहिए। किन्तु असंख्येय-योजन-विस्तृत विमानावासों में से अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी तो 'संख्यात' ही च्यवते हैं। शेष सभी कथन पूर्ववत् समझना चाहिए।
१५. एवं जहा सोहम्मे वत्तव्वया भणिया तहा ईसाणे वि छ गमगा भाणियव्वा। [१५] जिस प्रकार सौधर्म देवलोक के विषय में छह आलापक कहे, उसी प्रकार ईशान देवलोक के