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________________ तेरहवां शतक : उद्देशक-१ २५७ __पंकप्रभापृथ्वी में अवधिज्ञानी-अवधिदर्शनी क्यों नहीं ?-चौथी पंकप्रभा नरकपृथ्वी में से अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी उद्वर्त्तन नहीं करते; क्योंकि नरक में अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी प्रायः तीर्थंकर ही होते हैं; जो कि तृतीय नरकभूमि तक ही होते हैं । चौथी नरक से सातवीं नरक तक से निकलते हुए जीव तीर्थंकर नहीं हो सकते और वहाँ से निकलने वाले (उद्वर्त्तन करने वाले) जीव भी अवधिज्ञानअवधिदर्शन लेकर नहीं निकलते। सप्तम नरकपृथ्वी में सब मिथ्यात्वी ही क्यों ?—सातवीं नरक में मिथ्यात्वी या सम्यक्त्व-भ्रष्ट जीव ही उत्पन्न होते हैं; इस कारण इस नरक में मति-श्रुत-अवधिज्ञानी उत्पन्न नहीं होते तथा इनकी उद्वर्तना भी नहीं होती; क्योंकि वहाँ से निकले हुए जीव इन तीनों ज्ञानों में उत्पन्न नहीं होते। यद्यपि सातवीं नरक में प्रायः मिथ्यात्वी जीव ही उत्पन्न होते हैं, तथापि वहाँ उत्पन्न होने के पश्चात् जीव सम्यक्त्व प्राप्त कर सकता है। सम्यक्त्व प्राप्त कर लेने पर वहाँ मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी पाये जा सकते हैं । इसीलिए यहाँ कहा गया है कि सातवीं नरक में तीन ज्ञान वाले जीवों का उत्पाद और उद्वर्तना तो नहीं है किन्तु सत्ता है।' संख्यात-असंख्यात-विस्तृत नरकों में सम्यग्-मिथ्या-मिश्रदृष्टि नैरयिकों के उत्पाद-उद्वर्त्तना एवं अविरहित-विरहित की प्ररूपणा - १९. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु किं सम्मद्दिट्ठी नेरइया उववजति, मिच्छद्दिट्ठी नेरइया उववजंति, सम्मामिच्छद्दिट्ठी नेरइया उववज्जति ? ___ गोयमा ! सम्मदिट्ठी वि नेरइया उववजंति, मिच्छट्ठिी वि नेरइया उववजंति, नो सम्मामिच्छद्दिट्ठी नेरइया उववजति। [१९ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले नारकावासों में क्या सम्यग्दृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं, मिथ्यादृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं, अथवा सम्यग्मिथ्या (मिश्र) दृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? [१९ उ.] गौतम ! (पूर्वोक्त नारकावासों में) सम्यग्दृष्टि नैरयिक भी उत्पन्न होते हैं, मिथ्यादृष्टि नैरयिक भी उत्पन्न होते हैं, किन्तु सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिक उत्पन्न नहीं होते। २०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु किं सम्मद्दिट्ठी नेरतिया उव्वटुंति ? एवं चेव। [२० प्र.] इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्यात योजन-विस्तृत नारकावासों से १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६०० २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६००
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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