SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा—रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा। [३ प्र.] भगवन् ! (नरक-) पृथ्वियाँ कितनी कही गई हैं ? [३ उ.] गौतम ! (नरक-) पृथ्वियाँ सात कही गई हैं यथा-रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी। ४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीय केवतिया निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता ? गोयमा ! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता। [४ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नारकावास कहे गए हैं ? [४ उ.] गौतम ! (रत्नप्रभापृथ्वी में) तीस लाख नारकावास कहे हैं। ५. ते णं भंते ! किं संखेजवित्थडा, असंखेजवित्थडा ? गोयमा ! संखेजवित्थडा वि, असंखेजवित्थडा वि। [५ प्र.] भगवन् ! वे नारकावास संख्येय (योजन) विस्तृत हैं या असंख्येय (योजन) विस्तृत हैं ? [५ उ.] गौतम ! वे संख्येय (योजन) विस्तृत भी हैं और असंख्येय (योजन) विस्तृत भी हैं। विवेचन—प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. २ से ५ तक) में नरकपृथ्वियों की संख्या, रत्नप्रभापृथ्वी के नारकावासों की संख्या एवं उनके विस्तार का प्रतिपादन किया गया है। कठिन शब्दों के अर्थ—संखेजवित्थडा—संख्यात योजन विस्तार वाले। असंखेजवित्थडाअसंख्यात योजन विस्तार वाले। रत्नप्रभा के संख्यात विस्तृत नारकावासों में विविध विशेषण-विशिष्ट नारकों की उत्पत्तिसम्बन्धी उनचालीस प्रश्नोत्तर ६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं केवतिया नेरइया उववजंति ? १, केवतिया काउलेस्सा उववजंति ? २, केवतिया कण्हपंक्खिया उववजंति ? ३, केवतिया सुक्कपक्खिया उववजंति ? ४, केवतिया सन्नी उववजंति ? ५, केवतिया असन्नी उववज्जति ? ६, केवतिया भवसिद्धिया उववजंति ? ७, केवतिया अभवसिद्धिया उववजंति ? ८, केवतिया आभिणिबोहियनाणी उववजंति ? ९, केवतिया सुयनाणी उववजंति ? १०, केवतिया ओहिनाणी उववज्जति ? ११, केवतिया मतिअन्नाणी उववज्जति ? १२, केवतिया सुयअन्नाणी उववजंति ? १३, केवतिया विभंगनाणी उववजंति ? १४, केवतिया चक्खुदंसणी उववजति ? १५, केवतिया अचक्खुदंसणी उववजंति ? १६, केवतिया ओहिदंसणी उववज्जति ? १७, केवतिया आहारसण्णोवउत्ता उववज्जति? १८, केवइया भयसण्णोवउत्ता उववजंति ? १९, केवतिया मेहुणसण्णोवउत्ता उक्वजति ? २०, केवतिया परिग्गहसण्णोवउता उववजंति ? २१, केवतिया इत्थिवेदगा उववजंति ? २२, केवतिया पुरिसवेदगा उववजंति ? २३, केवतिया नपुंसगवेदगा उववज्जति? २४, केवतिया कोहकसाई
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy