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बारहवाँ शतक : उद्देशक-७
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सकता, इसलिए कहा गया—(३) जीव (आत्मा) नित्य है। जीव नित्य होने पर भी यदि कर्म अल्प हों तो भी तथाविध संसारपरिभ्रमण नहीं हो सकता, और वैसी स्थिति में उपर्युक्त कथन घटित नहीं हो सकता, इसलिए कहा गया (४) कर्मों की.बहुलता है--कर्मों की बहुलता होने पर भी यदि जन्म-मरण की अल्पता हो तो पूर्वोक्त अर्थ घटित नहीं सकता, इसलिए बतलाया गया—(५) जन्म-मरण की बहुलता है—इन पांच कारणों से लोक में एक परमाणुमात्र भी आकाश-प्रदेश ऐसा नहीं है, जहाँ जीव न जन्मा हो, और न मरा हो।'
कठिन शब्दों का भावार्थ-अयावयं अजाब्रज-बकरियों का बाड़ा। यहाँ सौ बकरियों के रहने योग्य बाड़े में हजार बकरियों को रखने का कथन किया है, वह उनके अत्यन्त सट कर ठसाठस भर कर रखने की दृष्टि से है। पउरगोयराओ-जहाँ घास-चारा चरने की प्रचुर भूमि हो। पउरपाणीयाओ-जहाँ प्रचुर पानी हो। इन दोनों पदों से उन बकरियों के प्रचुर मलमूत्र की संभावना, एवं क्षुधा-पिपासानिराकरण के कारण चिरंजीविता सूचित की गई है। चौवीस दण्डकों की आवास संख्या का अतिदेशपूर्वक निरूपण
४. कति णं भंते ! पुढवीओ पन्नत्ताओ? • गोयमा ! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, जहा पढमसए पंचमउद्देसए ( स० १ उ० ५ सु० १-५) तहेव आवासा ठावेयव्वा जाव अणुत्तरविमाणे त्ति जाव अपराजिए सव्वट्ठसिद्धे।
[४ प्र.] भगवन् ! पृथ्वियाँ (नरक-भूमियाँ) कितनी कही गई हैं ? __ [४ उ.] गौतम ! पृथ्वियाँ सात कही गई हैं। जिस प्रकार प्रथम शतक के पञ्चम उद्देशक (सूत्र १-५) में कहा गया है, उसी प्रकार (यहाँ भी) नरकादि के आवासों का कथन करना चाहिए। यावत् अनुत्तर-विमान यावत् अपराजित और सर्वार्थसिद्ध तक इसी प्रकार कहना चाहिए।
विवेचन—प्रस्तुत सूत्र (सं. ४) में सात नरकों के आवासों से लेकर सर्वार्थसिद्ध तक के विमानावासों तक का प्रथमशतक के पंचम उद्देशक के वर्णन के अनुसार अतिदेशपूर्वक निरूपण है।' एकजीव या सर्वजीवों के चौवीस दण्डकवर्ती आवासों में विविधरूपों में अनन्तशः उत्पन्न होने की प्ररूपणा
५.[१]अयं ण भंते ! जीवे इमीसे रतणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए नरगत्ताए नेरइयत्ताए उववन्नपुव्वे ?
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५८० . (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ४, पृ. २०७३ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५८० ३. देखिये, व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (आगम प्रकाशन समिति) प्रथम खण्ड, पृ ९०-९१