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३९१, चौवीस दण्डकों में शब्दादि दस स्थानों में इष्टानिष्ट स्थानों की प्ररूपणा ३९४,
महर्द्धिक देव का तिर्यक् पर्वतादि उल्लंघन-प्रलंघनसामर्थ्य-असामर्थ्य ३९६. छठा उद्देशक : किमिहार (आदि)
३९८ चौवीस दण्डकों में आहारपरिणाम, योनिक-स्थितिनिरूपण ३९८, चौवीस दण्डकों में वीचिद्रव्य-अवीचिद्रव्याहार-प्ररूपणा ३९९, शक्रेन्द से अच्युतेन्द्र तक देवेन्द्रों के दिव्य
भोगों की उपभोग पद्धति ३९९. सातवाँ उद्देशक : संश्लिष्ट ।
४०४ भगवान् द्वारा गौतम स्वामी को इस भव के बाद अपने समान सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने का आश्वासन ४०४, अनुत्तरौपपातिक देवों की जानने-देखने की शक्ति की प्ररूपणा ४०५, छह प्रकार का तुल्य ४०६, द्रव्यतुल्यनिरूपण ४०६, क्षेत्रतुल्यनिरूपण ४०७, कालतुल्यनिरूपण ४०७, भवतुल्यनिरूपण ४०२, भावतुल्यनिरूपण ४०८, संस्थानतुल्यनिरूपण ४१०. अनशनकर्ता अनगार द्वारा मूढता-अमूढतापूर्वक आहाराध्यवसायप्ररूपणा ४११, लवसप्तम देव : स्वरूप और दृष्टान्तपूर्वक कारणनिरूपण ४१२, अनुत्तरौपपातिक देवः स्वरूप,
कारण और उपपातहेतुक कर्म ४१४. आठवाँ उद्देशक : (विविध पृथ्वियों का परस्पर ) अन्तर
४१६ रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर ईषत्प्राग्भारापृथ्वी एवं अलोक पर्यन्त परस्पर अबाधान्तर की प्ररूपणा ४१६, शालवृक्ष, शालयष्टिका और उदुम्बरयष्टिका के भावी भवों की प्ररूपणा ४१९, अम्बड परिव्राजक के सात सौ शिष्य आराधक हुए ४२१, अम्बड परिव्राजक को दो भवों के अनन्तर मोक्षप्राप्ति की प्ररूपणा ४२१, अव्याबाध देवों की अव्याबाधता का निरूपण ४२२, सिर काट कर कमण्डलु में डालने की शक्रेन्द्र की वैक्रियशक्ति ४२३, जुंभक देवों
का स्वरूप, भेद, स्थिति ४२४. नौवाँ उद्देशक : भावितात्मा अनगार
भावितात्मा अनगार की ज्ञान सम्बन्धी और प्रकाशपुद्गलस्कन्ध सम्बन्धी प्ररूपणा ४२७, चौवीस दण्डकों में आत्त-अनात्त, इष्टानिष्ट आदि पुद्गलों की प्ररूपणा ४२८, महर्द्धिक वैक्रियशक्ति सम्पन्न देव की भाषासहस्रभाषणशक्ति ४३०, सूर्य का अन्वर्थ तथा उनकी प्रभादि के शुभत्व की प्ररूपणा ४३०.
श्रामण्य-पर्याय-सुख की देवसुख के साथ तुलना ४३२. दसवाँ उद्देशक : केवली
४३४ केवली एवं सिद्ध द्वारा छद्मस्थादि को जानने-देखने का सामर्थ्यनिरूपण ४३४, केवली
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