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________________ १७६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन—प्राणातिपातादि-विरमण और क्रोधादिविवेक वर्णादिरहित क्यों—प्राणातिपातादिविरमण और क्रोधादि-विवेक, ये सभी जीव के उपयोग-स्वरूप हैं; और जीवोपयोग अमूर्त है। जीव और जीवोपयोग के अमूर्त होने से अठारह पापस्थानों से विरमण भी अमूर्त है। इसलिए वह वर्णादि-रहित है। चार बुद्धि, अवग्रहादि चार, उत्थानादि पांच के विषय में वर्णादि-प्ररूपणा ९. अह भंते ! उप्पत्तिया वेणइया कम्मया पारिणामिया, एस णं कतिवण्णा० ? तं चेव जाव अफासा पन्नत्ता। [९ प्र.] भगवन् ! औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी बुद्धि कितने वर्ण, गन्ध रस और स्पर्श वाली हैं ? [७ उ.] गौतम ! (ये चारों) वर्ण गन्ध रस और स्पर्श से रहित हैं। १०. अह भंते ! उग्गहे ईहा अवाये धारणा, एस णं कतिवण्णा० ? एवं चेव जाव अफासा पन्नत्ता। [१० प्र.] भगवन् ! अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा में कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श कहे हैं ? [१० उ.] गौतम ! (ये चारों) वर्ण यावत् स्पर्श से रहित कहे हैं। ११. अह भंते ! उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे, एस णं कतिवण्णे० ? तं चेव जाव अफासे पन्नत्ते। [११ प्र.] भगवन् ! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम, इन सबमें कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श हैं ? [११ उ.] गौतम ! ये सभ पूर्ववत् वर्णादि यावत् स्पर्श से रहित कहे हैं। विवेचन—औत्पत्तिकी बुद्धि आदि वर्णादिरहित क्यों औत्पत्तिकी आदि चार बुद्धियाँ, अवग्रहादि चार (मतिज्ञान के प्रकार) एवं उत्थानादि पांच, ये सभी जीव के उपयोगविशेष हैं, इस कारण अमूर्त होने से वर्ण गन्ध, रस और स्पर्श से रहित हैं। औत्पत्तिकी आदि बुद्धियों का स्वरूप औत्पत्तिकी-शास्त्र, सत्कर्म एवं अभ्यास के बिना, अथवा पदार्थों को पहले देखे, सुने और सोचे बिना ही उन्हें ग्रहण करके जो स्वतः सहसा उत्पन्न होती है, वह औत्पत्तिकी बुद्धि है। यद्यपि औत्पत्तिकी बुद्धि में क्षयोपशम कारण है, किन्तु वह अन्तरंग होने से सभी बुद्धियों में सामान्यरूप से कारण है, इसलिए इनमें उसकी विवक्षा नहीं की गई है। वैनयिकी-विनय-(गुरुभक्तिशुश्रुषा आदि) से प्राप्त होने वाली बुद्धि।कार्मिकी-कर्म अर्थात्-सतत अभ्यास और विवेक से विस्तृत होने वाली बुद्धि। पारिणामिक—अतिदीर्घकाल तक पदार्थों को देखने आदि से, दीर्घकालिक अनुभव से, परिपक्व १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५७३ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५७३
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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