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________________ १६२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र भविष्यत्कालीन । एकत्तिया—एक जीवसम्बन्धी या एकवचन सम्बन्धी। पुहुत्तिया-बहुवचनसम्बन्धी। एकत्व और बहुत्व सम्बन्धी दण्डक–एकवचन सम्बन्धी औदारिकादि सात प्रकार के पुद्गलपरिवर्त्त होने से, सात दण्डक (विकल्प) होते हैं। इन सात दण्डकों को नैरयिकादि चौवीस दण्डकों में कहना चाहिए और इसी प्रकार बहुवचन से भी कहना चाहिए। एकवचन और बहुवचन-सम्बन्धी दण्डकों में अन्तर यह है कि एक-वचन सम्बन्धी दण्डकों में भविष्यत्कालीन पुद्गलपरिवर्त्त किसी जीव के होते हैं और किसी जीव के नहीं होते। बहुवचनसम्बन्धी दण्डकों में तो होते ही हैं, क्योंकि उनमें जीवसामान्य का ग्रहण है। एकत्व दृष्टि से चौवीस दण्डकों में चौवीस दण्डकवर्ती जीवत्व के रूप में अतीतादि सप्तविध पुद्गलपरिवर्त-प्ररूपणा २८.[१] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीया ? नत्थि एक्को वि। [२८-१ प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के, नैरयिक अवस्था में अतीत (भूतकालीन) औदारिकपुद्गलपरिवर्त्त कितने हुए हैं ? [२८-१ उ.] गौतम ! एक भी नहीं हुआ। [२] केवतिया पुरेक्खडा? नत्थि एक्को वि। [२८-२ प्र.] भगवन् ! भविष्यत्कालीन (औदारिक-पुद्गलपरिवर्त) कितने होंगे?. [२८-२ उ.] गौतम ! एक भी नहीं होगा। २९.[१] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा०? एवं चेव। [२९-१ प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के, असुरकुमाररूप में अतीत औदारिक-पुद्गलपरिवर्त कितने हुए हैं ? [२९-१ उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववक्तव्यतानुसार) जानना चाहिए। [१] एवं जाव थणियकुमारत्ते। [२९-२] इसी प्रकार (नागकुमार से लेकर) स्तनितकुमार तक कहना चाहिए। ३०. [१] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स पुढविकाइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५६८ २. वही, पत्र ५६८
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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