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________________ बारहवाँ शतक : उद्देशक-४ १४१ विवेचन—तीन परमाणुपुद्गलों का संयोग और विभाग—प्रस्तुत सूत्र में तीन परमाणुओं के संयुक्त होने पर त्रिप्रदेशिक स्कन्ध हो जाने तथा विभक्त होने पर यदि दो हिस्सों में विभक्त हो तो एक ओर एक परमाणु और दूसरी ओर द्विप्रदेशिक स्कन्ध होने तथा तीन हिस्सों में विभक्त हो तो पृथक्-पृथक् तीन परमाणु होने का निरूपण है। त्रिप्रदेशीस्कन्ध के दो विकल्प, यथा, १-२।१-१-१। चार परमाणु-पुद्गलों का संयोग-विभाग-निरूपण ४. चत्तारि भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति पुच्छा। गोयमा ! चउप्पएसिए खंधे भवति। से भिजमाणे दुहा वि, तिहावि, चउहा वि कज्जइ। दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ निपदेसिए खंधे भवति; अहवा दो दुपदेसिया खंधा भवंति। तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ दुपदेसिए खंधे भवति। चउहा कज्जमाणे चत्तारि परमाणुपोग्गला भवंति। [४ प्र.] भगवन् ! चार परमाणुपुद्गल इकट्ठे होते हैं, तब उनका क्या होता है ? [४ उ.] गौतम ! उन (एकत्र संहत चार परमाणुओं) का (एक) चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध बन जाता है। उनका भेदन होने पर दो तीन अथवा चार विभाग होते हैं। दो विभाग होने पर एक ओर (एक) परमाणुपुद्गल और दूसरी ओर त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होता है, अथवा पृथक्-पृथक् दो द्विप्रदेशिक स्कन्ध हो जाते हैं। तीन विभाग होने पर एक ओर पृथक्-पृथक् दो परमाणुपुद्गल और एक ओर द्विप्रदेशिक स्कन्ध रहता है। चार विभाग होने पर चार परमाणुपुद्गल पृथक्-पृथक् होते हैं। विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में चार परमाणुओं के संयुक्त होने पर एक चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध होने तथा उन्हें २-३-४ भागों में विभक्त किये जाने पर क्रमशः १ परमाणुपुद्गल १ त्रिप्रदेशिकस्कन्ध, अथवा पृथक्-पृथक् दो द्विप्रदेशिक स्कन्ध; पृथक्-पृथक् दो परमाणु और १ द्विप्रदेशिक स्कन्ध तथा पृथक्-पृथक् ४ परमाणुपुद्गल हो जाने का निरूपण किया गया है। चतुष्प्रदेशीस्कन्ध के चार विकल्प—१-३। २-२। १-१-२।१-१-१-१ । परमाणुपुद्गल परस्पर स्वाभाविक रूप से ही मिलते और अलग होते हैं, किसी के प्रयत्न से नहीं, तथापि यहाँ और आगे सर्वत्र 'किए जाएँ' शब्दों का जो प्रयोग हुआ है वह केवल बुद्धि द्वारा ही समझना चाहिए। पांच परमाणु-पुद्गलों का संयोग-विभाग-निरूपण ५. पंच भंते ! परमाणुपोग्गला० पुच्छा। गोयमा ! पंचपदेसिए खंधे भवति। से भिजमाणे दुहा वि, तिहा वि, चउहा वि, पंचहा वि कजइ। दुहा कजमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ चउपदेसिए खंधे भवति, अहवा एगयओ दुपदेसिए खंधे, एगयओ तिपदेसिए खंधे भवति। तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ तिपदेसिए खंधे भवति; अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दो दुपएसिया खंधा भवंति। चउहा कज्जमाणे एगयओ तिण्णि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुपएसिए खंधे भवति। पंचहा कजमाणे पंच परमाणुपोग्गला भवंति।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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