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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२२] तदनन्तर वह जयंती श्रमणोपासिका, श्रमण भगवान् महावीर से यह (पूर्वोक्त) अर्थ (समाधान) सुन कर एवं हृदय में अवधारण करके हर्षित और सन्तुष्ट हुई, इत्यादि शेष समस्त वर्णन (श. ९, उ. ३३, सू. १७२० में कथित) देवानन्दा के समान है यावत् जयंती श्रमणोपासिका प्रव्रजित हुई यावत् सर्व दुःखों से रहित हुई, ( यहाँ तक कहना चाहिए) । १३८ हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है— यों कहकर श्री गौतम स्वामी यावत् विचरण करते हैं । विवेचन — जयंती श्रमणोपासिका पर समाधान की प्रतिक्रिया — प्रस्तुत सूत्र में इस उद्देशक का उपसंहार करते हुए शास्त्रकार ने जयंती श्रमणोपासिका के मन पर अपनी शंकाओं के समीचीन समाधान की प्रतिक्रिया का वर्णन किया है। तीन मुख्य प्रतिक्रियाएँ प्रतिफलित होती हैं— (१) जयंती हर्षित, संतुष्ट होकर देवानन्दा के समान भगवान् को वन्दन - नमस्कारान्तर श्रद्धापूर्वक प्रव्रज्या ग्रहण करती है।.(२) भगवान् द्वारा प्रव्रजित साध्वी जयंती ने आर्या चन्दनबाला की शिष्या बन कर अंग शास्त्रों का अध्ययन किया, गुरुणी. की आज्ञानुसार संयमपालन किया। (३) तपश्चरण द्वारा सिद्ध-बुद्ध-मुक्त एवं सर्व दुःखरहित हुई । ॥ बारहवाँ शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ १. (क) भगवती. शतक ९, उ. ३३, सू. १७- २० तक का देवानन्दावर्णन (ख) भगवती (वियाहपण्णत्ति) ( मूलपाठ - टिप्पणयुक्त), पृ. ५७२
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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