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________________ १२४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र भीता तत्था तसिया संसारभउव्विग्गा समणं भगवं महावीरं वंदंति, नमंसंति, वं० २ जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति, उवा० २ संखं समणोवासगं वंदंति नमंसंति, वं० २ एयमट्टं सम्मं विणणं भुज्जो भुज्जो खामेंति । [२९] श्रमण भगवान् महावीर से यह ( क्रोधादि कषाय का तीव्र और कटु) फल सुन कर और अवधारण -करके वे श्रमणोपासक उसी समय (कर्मबन्ध से) भयभीत, त्रस्त, दुःखित एवं संसारभय से उद्विग्न' हुए । उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार किया और जहाँ शंख श्रमणोपासक था, वहाँ उसके पास आए । शंख श्रमणोपासक को उन्होंने वन्दन - नमस्कार किया और फिर अपने उस अविनयरूप अपराध के लिए विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना करने लगे। ३०. तए णं समणोवासगा सेसं जहा आलभियाए (स. ११ उ. १२ सु. १२) जाव' पडिगता । [३०] इसके पश्चात् उन सभी श्रमणोपासकों ने भगवान् से कई प्रश्न पूछे, इत्यादि सब वर्णन (श. ११ उ. १२ सू. १२ में उक्त) आलभिका (नगरी) के ( श्रमणोपासकों के) समान जानना चाहिए, यावत् वे अपने-अपने स्थान पर लौट गये; ( यहाँ तक कहना चाहिए । ) विवेचन — श्रवण का फल : सविनय क्षमापना — भगवान् के मुख से सुन कर जब उन श्रावकों ने क्रोधादि कषायों का कटुफल जाना तो वे कर्मबन्ध से भयभीत हो गये और संसारभय से उद्विग्न होकर पश्चात्तापपूर्वक शंख श्रावक के पास गए। उससे सविनय क्षमायाचना की । शंख भी सबसे सौहार्दपूर्वक मिले और सबको आश्वस्त किया । शंख की मुक्ति के विषय में गौतम स्वामी का प्रश्न, भगवान् का उत्तर ३१. 'भंते ! 'त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी—पभू णं भंते! संखे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतियं सेसं जहा इसिभद्दपुत्तस्स (स० ११ उ० १२ सु० १३-१४) जाव अंतं काहिति । सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरति । ॥ बारसमे सए : पढमो उद्देसओ समत्तो ॥ १२-१॥ [३१ प्र. ] 'हे भगवन् !, ' यों कह कर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन- नमस्कार करके इस प्रकार पूछा १. 'जाव' शब्द सूचक पाठ - ' ........ पसिनाई पुच्छंति, पं. अट्ठाई परियाइयंति. अ. समणं भगवं महावीरं वंदंति णमंसंति, वं. न. जामेव दिसं पाउब्भूया, तामेव दिसं ' — भगवती. श. ११ उ. १२ २. 'जाव' शब्द सूचक पाठ - .............. मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्टे। इसिभद्दपुत्ते समणोवासए बहूहिं सीलव्वय अप्पाणं भावेमाणे उववज्जिहि । पाउणहि सोहम्मे कप्पे महाविदेहे वासे सिज्झिहि जाव बहूई वासाइं समणोवासगपरियागं चत्तारि पलिओवमाई ठिई भविस्सइ -भगवती. श. ११ उ. १२ सू. १३-१४ '
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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