SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कही, यावत्-धर्मदेशना दी। वे आज्ञा के आराधक हुए (यहाँ तक कथन करना) २३. तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ट उठाए उडेति, उ० २ समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, वं० २ जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति, उवा० २ संखं समणोवासयं एवं वयासी—'तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! विउलं असणं जाव विहरिस्सामो।' तए णं तुमं पोसहसालाए जाव विहरिए तं सुट्ट णं तुमं देवाणुप्पिया ! अम्हं हीलसि।" [२३] इसके बाद वे सभी श्रमणोपासक श्रमण भगवान् महावीर से धर्म (धर्मोपदेश) श्रवण कर और हृदय में अवधारणा करके हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। फिर उन्होंने खड़े होकर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दननमस्कार किया। तदनन्तर वे शंख श्रमणोपासक के पास आए और शंख श्रमणोपासक से इस प्रकार कहने लगे देवानुप्रिय! कल आपने ही हमें इस प्रकार कहा था कि "देवानुप्रियो ! तुम प्रचुर अशनादि आहार तैयार करवाओ, हम आहार देते हुए यावत् उपभोग करते हुए पौषध का अनुपालन करेंगे। किन्तु फिर आप आए. नहीं और आपने अकेले ही पौषधशाला में यावत् निराहार पौषध कर लिया। अतः देवानुप्रिय ! आपने हमारी अच्छी अवहेलना (तौहीन) की !" २४. 'अजो !' त्ति समणे भगवं महावीरे ते समणोवासए एवं वयासी—मा णं अजो ! तुब्भे संखं समणोवासगं हीलेह, निंदह, खिंसह, गरहह, अवमन्नह। संखे णं समणोवासए पिराधम्मे चेव, दढधम्मे चेव, सुदक्खुजागरियं जागरिते। [२४] (उन श्रमणोपासकों की इस बात को सुन कर) आर्यो ! इस प्रकार (सम्बोधित करते हुए) श्रमण . भगवान् महावीर ने उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार कहा-"आर्यो ! तुम श्रमणोपासक शंख की हीलना (अवज्ञा), निन्दा, कोसना (खिंसना), गर्हा और अवमानना (अपमान) मत करो। क्योंकि शंख श्रमणोपासक (स्वयं) प्रियधर्मा और दृढधर्मा है। इसने (प्रमाद और निद्रा का त्याग करके) सुदर्शन (सुरक्षा या सुदृश्या) नामक जागरिका जागृत की है।" विवेचन—प्रस्तुत तीन सूत्रों (२२-२३-२४) में चार बातें शास्त्रकार ने प्रस्तुत की हैं—(१) भगवान् द्वारा उन श्रावकों और परिषद् को धर्मोपदेश, (२) धर्म श्रमण-मनन कर हृष्ट-तुष्ट श्रमणोपासकों द्वारा भगवान् को वन्दन-नमन कर प्रस्थान, (३) श्रमणोपासकों द्वारा शंख श्रावक को उपालम्भ, (४) भगवान् द्वारा शंख श्रावक की निन्दादि न करने का श्रावकों को निर्देश। श्रावकों के मन में शंख श्रमणोपासक के प्रति आक्रोश और भगवान् द्वारा समाधान-शंख श्रावक ने कहा था खा-पी कर सामूहिक रूप से पौषध करने का और वे बिना खाये-पीये ही निराहार पौषध में अकेले पौषधशाला में बैठ गये,यह बात श्रावकों को बड़ी अटपटी लगी है। उन्होंने अपना अपमान समझा, परन्तु भगवान् महावीर ने उन्हें शंख की अवज्ञा या निन्दादि करने से रोका ! भगवान् के इस प्रकार कहने का आशय यह था कि कोई व्यक्ति पह ने अल्पत्याग करने की सोचता है, किन्तु बाद में उसके परिणाम उससे अधिक और उच्च
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy