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(विषयानुक्रम)
ग्यारहवाँ शतक
पृष्ठांक
प्राथमिक-बारह उद्देशकों का परिचय ३, संग्रहणीगाथार्थ ५, बारह उद्देशकों का स्पष्टीकरण ५,
एकार्थक उत्पलादि का पृथक् ग्रहण क्यों ? ५. प्रथम उद्देशक : उत्पल (उत्पलजीव चर्चा)
६-२३ बत्तीस द्वारसंग्रह ६, उपपातद्वार ६, परिमाणद्वार ६. अपहारद्वार ७, उत्पलजीव की अपेक्षा से अपहारद्वार ८, ४. उच्चत्वदार ८, ज्ञानावरणीयादि-बन्ध-वेद-उदय-उदीरणाद्वार ८, उत्पलजीव के बन्धक-अबन्धक, वेदक-अवेदक उदयी-अनुदयी, उदीरक-अनुदीरक सम्बन्धी विचार १०, ज्ञानावरणीयादि कर्मों के बंध आदि क्यों और कैसे ? १०, एक अनेक जीव बन्धक आदि कैसे ? १०, वेदक एवं उदीरक भंग १०, ९. लेश्या द्वार १०, उत्पलजीवों में लेश्याएं ११, लेश्याओं के भंगजाल का नक्शा ११, असंयोगी ८ भंग ११, द्विकसंयोगी २४ भंग ११, त्रिकसंयोगी ३२ भंग ११, चतुःसंयोगी १६ भंग १२, दृष्टिज्ञान-योग-उपयोगद्वार १३, उत्पलजीवों में दृष्टि, ज्ञान, योग एवं उपयोग की प्ररूपणा १३, वर्ण-रसादि-उच्छ्वासक-आहारकद्वार १४, उत्पलजीवों के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श १५, उच्छ्वास-निश्वास १४, असंयोगी, द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी भंग १५, विरतिद्वार क्रियाद्वार और बन्धकद्वार १६, संज्ञाद्वार और कषायद्वार १६, स्त्रीवेदादिवेदक-बन्धकसंज्ञी-इन्द्रियद्वार १७, अनुबन्ध-संवेधद्वार १८, उत्पलजीव का अनुबन्ध और कायसंवेध २०, आहार-स्थिति-समुद्घात-उद्वर्तनाद्वार २०; उत्पलजीवों के आहार, स्थिति, समुद्घात और उद्वर्त्तन विषयक प्ररूपणा २२, नियमत: छह दिशाओं से आहार क्यों ? २२, अनन्तर उद्वर्तन कहाँ और क्यों ? समस्त संसारी जीवों का उत्पल के मूलादि में
जन्म २२. द्वितीय उद्देशक : शालूक (के जीव की चर्चा)
शालूक जीव सम्बन्धी वक्तव्यता २४ तृतीय उद्देशक : पलाश (के जीवसम्बन्धी चर्चा) ।
उत्पलोद्देशक के समान प्रायः सभी द्वार २५ चतुर्थ उद्देशक : कुम्भिक (के जीवसम्बन्धी)
तृतीय उद्देशक के अतिदेशपूर्वक कुम्भिक वर्णन २७ पंचम उद्देशक : नाडीक जीव सम्बन्धी चर्चा
नालिक-नाडीक वनस्पति का स्वरूप २८
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