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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तृतीय खण्ड : प्रथम संस्करण के प्रकाशन में अर्थ-सहयोगी श्रीमान्सेठ एस. रिखबचन्दजी चोरड़िया [प्रथम संस्करण से] अकबर इलाहाबादी का एक प्रसिद्ध शेर है - आतप को खुदापत कहो, आतप खुदा नहीं लेकिन खुदा के नूर से, आतप जुदा नहीं। आशय यह है कि मनुष्य ईश्वर नहीं है किन्तु उसमें ईश्वरीय गुण अवश्य हैं और यही ईश्वरीयगुणदया, सत्यनिष्ठा, सेवा-भावना, उदारता और परोपकारवृत्ति मनुष्य को मनुष्य के रूप में, या कहें कि ईश्वर के पुत्र के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। स्वर्गीय रिखबचन्दजी चोरड़िया सच्चे मानव थे। उनका जीवन मानवीय सद्गुणों से ओतप्रोत था। सेवा और परोपकारवृत्ति उनके मन के कण-कण में रमी थी। __आपने अपने पुरुषार्थ-बल से विपुल लक्ष्मी का उपार्जन किया और पवित्र मानवीय भावना से जन-जन के हितार्थ एवं धर्म तथा समाज की सेवा के लिए उस लक्ष्मी का सदुपयोग भी किया। वे आज हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु उनके सद्गुणों की सुवास हमारे मन-मस्तिष्क को आज भी प्रफुल्लित कर रही है। आपका जन्म नोखा (चांदावतों का) के प्रसिद्ध चोरडिया परिवार में हुआ।आपके पिता श्री सिमरथमलजी सा. चोरडिया स्थानकवासी, जैन समाज के प्रमुख श्रावक तथा प्रसिद्ध पुरुष थे। आपकी माताश्री गटुबाई भी बड़ी धर्मनिष्ठ, सेवाभावी और सरलात्मा श्राविका थीं। इस प्रकार माता-पिता के सुसंस्कारों में पले-पुसे श्रीमान् रिखबचन्दजी भी सेवा, सरलता, उदारता तथा मधुरता की मूर्ति थे। श्रीमान् सिमरथमलजी सा. के चार सुपुत्र थे - (१) श्री रतनचन्दजी सा. चोरड़िया (२) श्री बादलचन्दजी सा. चोरड़िया (३) श्री सायरचन्दजी सा. चोरड़िया (४) श्री रिखबचन्दजी सा. चोरड़िया चेन्नई में आपका फाइनेन्स का प्रमुख व्यापार था। आपने सदैव मधुरता एवं प्रामाणिकता के साथ, न्यायनीतिपूर्वक व्यवसाय किया। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती उमरावकंवर बाई बड़ी धर्मशीला श्राविका हैं। सन्त-सतियों की सेवा में सदा तत्पर रहती हैं और इन्सानों में धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण करने में दक्ष हैं। [९]
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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