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प्रकाशकीय
व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) सूत्र का द्वादशांगी में पांचवां स्थान है। वर्तमान में उपलब्ध आगमों में यह विषय विवेचन और पृष्ठ संख्या की दृष्टि से विशाल है।
विशालकाय होने से व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चार खण्डों में प्रकाशित किया गया था। दो खण्डों के तृतीय संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। तीसरे खण्ड का भी यह तृतीय संस्करण है। इसमें ग्यारहवें से उन्नीसवें शतक तक का प्रकाशन हुआ है। शेष रहे वीसवें से इकतालीसवें शतक चतुर्थ खण्ड में प्रकाशित हैं।
आगम प्रकाशन समिति विज्ञजनों की आभारी है कि उन्होंने आगमों के सम्पादन, अनुवाद आदि. में मूल ग्रन्थ के भावों को यथातथ्य रूप से प्रस्तुत किया है। साथ ही अपने समस्त अर्थसहयोगी सज्जनों को धन्यवाद देती है कि उनके द्वारा प्रदत्त सहयोग से आगम प्रकाशन का जो कार्य प्रारम्भ हुआ था वह अबाध गति से चल रहा है। आगमों के पठन-पाठन, अध्ययन-अध्यापन में पाठकों का सराहनीय सहयोग प्राप्त हुआ है। एतदर्थ उनका अभिनन्दन करते हुए प्रसन्नता अनुभव करते हैं।
समिति ने आगम प्रकाशन का कार्य आर्थिक लाभ के लिए नहीं, किन्तु स्व. श्रद्धेय युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म० की आगम ज्ञान के अधिकाधिक प्रचार-प्रसार की पावन भावना का विस्तार करने के लिए प्रारम्भ किया था। आज युवाचार्यश्री हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु उन महापुरुष की भावना समिति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती रही है। उन श्रद्धेय को शत-शत वंदन-नमन करते हैं।
सागरमल बेताला
अध्यक्ष
रतनचंद मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष
सरदारमल चोरडिया
महामंत्री
ज्ञानचन्द विनायकिया
मंत्री
श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर