________________
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अपर्याप्ति नहीं होती। .
इस प्रकार १४ द्वारों को लेकर प्रस्तुत सूत्रों पर वृत्तिकार ने सप्रदेश-अप्रदेश का विचार प्रस्तुत किया है।' समस्त जीवों में प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान के होने, जानने, करने तथा आयुष्यबंध के सम्बन्ध में प्ररूपणा
२१.[१] जीवा णं भंते ! किं पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी, पच्चक्खाणाऽपच्चक्खाणी ? गोयमा ! जीवा पच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणाऽपच्चक्खाणी वि। [१२-१ प्र.] भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी हैं या प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं? [१२-१ उ.] गौतम ! जीव प्रत्याखानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी हैं। [२] सव्व जीवाणं एवं पुच्छा।
गोयमा ! नेरइया अपच्चक्खाणी जाव चउरिंदिया, सेसा दो पडिसेहेयव्वा। पंचेंदियतिरिक्खजोणिया नो पच्चक्खाणी, अपच्चखाणी वि, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी वि। मणुस्सा तिण्णि वि। सेसा जहा नेरतिया।
[२१-२ प्र.] इसी तरह सभी जीवों के सम्बंध में प्रश्न है (कि वे प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी है या प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं ?)
[२१-२ उ.] गौतम ! नैरयिकजीव (अप्रत्याख्यानी हैं) यावत् चतुरिन्द्रिय जीव अप्रत्याख्यानी हैं, इन जीवों (नैरयिक से लेकर चतुरिन्द्रिय जीवों तक) में शेष दो भंगों (प्रत्याख्यानी और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी) का निषेध करना चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यंञ्च प्रत्याख्यानी नहीं हैं, किन्तु अप्रत्याख्यानी भी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी हैं। मनुष्य तीनों भंग के स्वामी हैं । शेष जीवों का कथन नैरयिकों की तरह करना चाहिए।
२२. जीवा णं भंते ! किं पच्चक्खाणंजाणंति, अपच्चक्खाणंजाणंति, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं जाणंति?
गोयमा ! जे पंचेदिया ते तिण्णि वि जाणंति, अवसेसा पच्चक्खाणं न जाणंति। .
[२२ प्र.] भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यान को जानते हैं, अप्रत्याख्यान को जानते हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान को जानते हैं ?
[२२ उ.] गौतम ! जो पंचेन्द्रिय जीव हैं, वे तीनों को जानते हैं। शेष जीव प्रत्याख्यान को नहीं जानते, (अप्रत्याख्यान को नहीं जानते और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान को भी नहीं जानते।)
२३. जीवा णं भंते ! किं पच्चक्खाणं कुव्वंति अपच्चक्खाणं कुव्वंति, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं कुव्वंति ? १. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २६१ से २६६ तक
(ख) भगवतीसूत्र (हिन्दीविवेचनयुक्त) भा. २, पृष्ट ९८४ से ९९५ तक