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________________ दशम शतक : उद्देशक-६ सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति. । ॥ दसमे सए छट्ठो उद्देसओ समत्तो ॥१०-६ ॥ [२ प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र कितनी महती ऋषि वाला यावत् कितने महान् सुख वाला है ? [२ उ.] गौतम! वह महा ऋद्धिशाली यावत् महासुखसम्पन्न है । वह वहाँ बत्तीस लाख विमानों का स्वामी है, यावत् विचरता है। देवेन्द्र देवराज शक्र इस प्रकार की महाऋद्धि से संपन्न और महासुखी है । ६३९ हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है!, इस प्रकार कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरण करते हैं । विवेचन — सूर्याभ के अतिदेशपूर्वक शक्रेन्द्र तथा उसकी सुधर्मासभा आदि का वर्णनराजप्रश्नीयसूत्र में सूर्याभदेव का विस्तृत वर्णन है। यहाँ शक्रेन्द्र के उपपात आदि के वर्णन के लिए उसी का अतिदेश किया गया है। अत: इसका समग्र वर्णन सूर्याभदेववत् समझना चाहिए। यहाँ पिछले सूत्र में सूर्याभदेववत् शक्र की ऋद्धि सुख द्युति आदि का वर्णन किया गया है। ॥ दशम शतक : छठा उद्देशक समाप्त ॥ १. (क) राजप्रश्नीयसूत्र ( गुर्जरग्रन्थ) पृ. १५२-५४ (ख) वियाहप. ( मू.पा.टि.), भा. २, पृ. ५०४
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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