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________________ ६३० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र रूपकान्ता और रूपप्रभा। इनमें से प्रत्येक देवी-अग्रमहिषी के परिवार आदि का तथा शेष समस्त वर्णन धरणेन्द्र के समान जानना चाहिए। १७. भूयाणंदस्स णं भंते ! नागवित्तस्स० पुच्छा। अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा—सुणंदा सुभद्दा सुजाया सुमणा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए० अवसेसं जहा चमरलोगपालाणं। एवं सेसाणं तिण्ह वि लोगपालाणं। . [१७ प्र.] भगवन् ! भूतानन्द के लोकपाल नागवित्त की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? इत्यादि पृच्छा। [१७ उ.] आर्यो ! (नागवित्त की) चार अग्रमहिषियाँ हैं । वे इस प्रकार—सुनन्दा, सुभद्रा, सुजाता और सुमना । इसमें प्रत्येक देवी के परिवार आदि का शेष वर्णन चरमेन्द्र के लोकपाल के समान जानना चाहिए। इसी प्रकार शेष तीन लोकपालों का वर्णन भी (चरमेन्द्र के शेष तीन लोकपालों के समान) जानना चाहिए। १८. जे दाहिणिल्ला इंदा तेसिं जहा थरणस्स। लोकपालाणं पि तेसिं जहा धरणलोगपालाणं। उत्तरिल्लाणं इंदाणं जहा भूयाणंदस्स। लोगपालाणं वि तेसिं जहा भूयाणंदस्स लोगपालाणं। नवरं इंदाणं सव्वेसिं रायहाणीओ, सीहासणाणि य सरिसणामगाणि, परियारो जहा मोउद्देसए (स. ३ उ. १ सु,. १४) लोगपालाणं सव्वेसिं रायहाणीओ सीहासणाणि य सरिसनामंगाणि, परियारो जहा चमरलोगपालाणं। [१८] जो दक्षिणदिशावर्ती इन्द्र हैं, उनका कथन धरणेन्द्र के समान तथा उनके लोकपालों का कथन धरणेन्द्र के लोकपालों के समान जानना चाहिए। उत्तरदिशावर्ती इन्द्रों का कथन भूतानन्द के समान तथा उनके लोकपालों का कथन भी भूतानन्द के लोकपालों के समान जानना चाहिए। विशेष इतना है कि सब इन्द्रों की राजधानियों और उनके सिंहासनों का नाम इन्द्र के नाम के समान जानना चाहिए। उनके परिवार का वर्णन भगवती सूत्र के तीसरे शतक के प्रथम उद्देशक में कहे अनुसार जानना चाहिए। सभी लोकपालों की राजधानियों और उनके सिंहासनों का नाम लोकपालों के नाम के सदृश जानना चाहिए तथा उनके परिवार का वर्णन चमरेन्द्र के लोकपालों के परिवार के वर्णन के समान जानना चाहिए। विवेचन-भूतानन्द, दक्षिण-उत्तरवर्ती इन्द्र एवं उनके लोकपालों के देवी-परिवार का वर्णन प्रस्तुत तीन सूत्रों (१६-१७-१८) में अतिदेशपूर्वक किया गया है। प्रायः सारा वर्णन समान है, केवल राजधानियों, सिंहासनों तथा व्यक्तियों के नामों में अन्तर है। राजधानियों और सिंहासनों के नाम प्रत्येक इन्द्र के अपने-अपने नाम के अनुसार हैं। सुधर्मा सभा में प्रत्येक इन्द्र की अपने देवी-परिवार के साथ मैथुननिमित्तक असमर्थता भी साथ-साथ ध्वनित कर दी है। १. देखिये-भगवतीसूत्र शतक ३, मोका नामक प्रथम उद्देशक, सू. १४ २. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. २, पृ. ५००-५०१
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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