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________________ ६२८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १२. बलिस्स णं भंते ! वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स महारण्णो कति अग्गमहिसीओ पन्नात्ताओ? अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–मीणगा सुभद्दा विजया असणी। तत्थ णं एगमेगाए देवीए. सेसं जहा चमरसोमस्स, एवं जाव वेसमणस्स। [१२ प्र.] भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के लोकपाल सोम महाराजा की कितनी अग्रमहिषियाँ [१२ उ.] आर्यो ! (सोम महाराजा की) चार अग्रमहिषियाँ हैं ? वे इस प्रकार – (१) मेनका, (२) सुभद्रा, (३) विजया और (४) अशनी। इनकी एक-एक देवी का परिवार आदि समग्र वर्णन चमरेन्द्र के लोकपाल सोम के समान जानना चाहिए। इसी प्रकार वैरोचनेन्द्र बलि के लोकपाल वैश्रमण तक सारा वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। विवेचनवैरोचनेन्द्र एवं उनके चार लोकपालों की अग्रमहिषियों आदि का वर्णन—प्रस्तुत दो (११-१२) सूत्रों में वैरोचनेन्द्र बली एवं पूर्वोक्त नाम के चार लोकपालों की अग्रमहिषियों तथा उनके देवीपरिवार का वर्णन है, साथ ही उनकी अपनी-अपनी राजधानी की सुधर्मा सभा में अपने देवी वर्ग के साथ उनकी मैथुननिमित्तक असमर्थता का भी अतिदेश किया गया है। धरणेन्द्र और उसके लोकपालों का देवी-परिवार १३. धरणस्स णं भंते ! नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ.? अज्जो ! छ अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा—अला' मक्का सतेरा सोयामणी इंदा घणविज्जुया। तत्थ णं एगमेगाए देवीए छ च्छ देविसहस्सा परियारो पन्नत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्नाई छ च्छ देविसहस्साई परियारं विउव्वित्तए। एवामेव सपुव्वावरेणं छत्तीसं देविसहस्सा, से तंतुडिए। [१३ प्र.] भगवन्! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण की कितनी अग्रमहिषियाँ कही गई हैं ? । [१३ उ.] आर्यो! (धरणेन्द्र की) छह अग्रमहिषियाँ हैं। यथा—(१) अला (इला), (२) मक्का (शुक्रा), (३) सतारा, (४) सौदामिनी (५) इन्द्रा और (६) घनविद्युत्। उनमें से प्रत्येक अग्रमहिषी के छहछह हजार देवियों का परिवार कहा गया है। इनमें से प्रत्येक देवी (अग्रमहिषी), अन्य छह-छह हजार देवियों के परिवार की विकुर्वणा कर सकती है। इस प्रकार पूर्वापर सब मिला कर छत्तीस हजार देवियों का यह त्रुटिक (वर्ग) कहा गया है। १४. पभू णं भंते ! धरणे ? सेसं तं चेव, नवरं धरणाए रायहाणीए धरणंसि सीहासणंसि सओ १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. २, पृ. ४९९ २. पाठान्तर–दूसरी प्रति में अला' के स्थान में 'इला' तथा 'मक्का' के स्थान में 'सुक्का' पाठ मिलता है।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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