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उपोद्घात
तइओ उद्देसओ : तृतीय उद्देशक आइड्ढी : आत्मऋद्धि
देव की उल्लंघनशक्ति
१.रायगिहे जाव एवं वदासि—
[१] राजगृह नगर में (श्री गौतमस्वामी ने भगवान् महावीर से) यावत् इस प्रकार पूछा— देवों की देवावासों की उल्लंघनशक्ति : अपनी और दूसरी
२. आइड्डीए णं भंते ! देवे जाव चत्तारि पंच देवावासंतराई वीतिक्कंते तेण पर परिड्डीए ? हंता, गोयमा ! आइड्डीए णं, तं चेव ।
[२ प्र.] भगवन्! देव क्या आत्मऋद्धि (अपनी शक्ति) द्वारा यावत् चार-पांच देवावासान्तरों का उल्लंघन करता है और इसके पश्चात् दूसरी शक्ति द्वारा उल्लंघन करता है ?
[२ उ.] हां गौतम ! देव आत्मशक्ति से यावत् चार-पांच देवावासों का उल्लंघन करता है और उसके उपरान्त दूसरी (वैक्रिय) शक्ति (पर ऋद्धि) द्वारा उल्लंघन करता है। 1
३. एवं असुरकुमारे वि । नवरं असुरकुमारावासंतराई, सेसं तं चेव ।
[३] इसी प्रकार असुरकुमारों के विषय में भी समझ लेना चाहिए। विशेष यह है कि वे असुरकुमारों के आवासों का उल्लंघन करते हैं। शेष पूर्ववत् जानना चाहिए।
४. एवं एएणं कमेणं जाव थणियकुमारे।
[४] इसी प्रकार इसी क्रम में स्तनितकुमारपर्यन्त जानना चाहिए।
५. एवं वाणमंतरे जोतिसिए वेमाणिए जाव तेणं परं परिड्डीए ।
[५] इसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवपर्यन्त जानना चाहिए कि यावत् वे आत्मशक्ति से चार-पांच अन्य देवावासों का उल्लंघन करते हैं, इसके उपरान्त परऋद्धि (स्वाभाविक शक्ति से अतिरिक्त दूसरी वैक्रियशक्ति) से उल्लंघन करते हैं।
विवेचन — आत्मऋद्धि और परऋद्धि से देवों की उल्लंघनशक्ति प्रस्तुत ४ सूत्रों (२ से ५ तक) में गौतमस्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने यह बताया है कि सामान्य देव, यहाँ तक कि भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव आत्मऋद्धि (स्वकीय स्वाभाविकशक्ति) से अपनी-अपनी जाति के